________________
( १०३ )
क्या अहिंसा केवल अनु ग्रह में ही है :
इस तथ्य से इंकार नहीं किया जा सकता कि अनुग्रह में अहिंसा है, लेकिन यदि सिर्फ अनुग्रह में अहिंसा है तो क्या निग्रह में हिंसा ही है ? यहाँ हमें यही देखना है कि जैन-धर्म निग्रह के विषय में क्या कहता है ? __साधारण तौर पर देखा जाये तो जिसे दण्ड दिया जाता है उसे कष्ट होना स्वाभाविक है और जैन धर्मानुसार किसी प्राणी को कष्ट देना हिंसा की कोटि में माना जाता है जबकि जैन धर्म में हिंसा को कोई स्थान नहीं। इस दृष्टि से तो यही जान पड़ता है कि निग्रह में हिंसा है लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं।
- जैसा कि पहले भी कहा जा चका है कि जैन धर्म में किसी कार्य के पीछे छिपी उसकी भावना अथवा संकल्प को महत्व दिया जाता है । यदि दण्ड में हिंसा मान ली जाये तो फिर जैन धर्म में आचार्य अथवा माता-पिता का कोई स्थान ही न रह जाये । जब आचार्य किसी साधक की गलती पर उसे दण्ड देते हैं तो उसके मूल में छिपी भावना उस साधक को सही मार्ग दिखाकर कल्याण की होती है, न कि उसे कष्ट पहुँचाने की। यही बात माता-पिता पर भी लागू होती है। दण्ड देने वाला भी अगर समझदार है तो अवश्य समझता है कि जिनका मुझ पर अनुग्रह था यदि वे दण्ड देते हैं, तो मेरे कल्याण के लिए ही । उत्तराध्ययन सूत्र में कहा गया है
“आचार्य महाराज मेरे को कोमल अथवा कठोर वाक्यों से जो शिक्षा करते हैं यह सब मेरे लाभ के लिये है। इस प्रकार से विचार करता हुआ शिष्य प्रयत्नपूर्वक गुरुजनों की शिक्षा को ग्रहण करे।"
सार यही है कि किसी प्रकार की भूल हो जाने पर उसके सुधार के निमित्त गुरुजन यदि किसी प्रकार की शिक्षा देने में प्रवृत्त हों तथा उस शिक्षा
-
१. उत्तराध्ययन ---अध्याय १, श्लोक २७
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org