Book Title: Vibhinna Dharm Shastro me Ahimsa ka Swarup
Author(s): Nina Jain
Publisher: Kashiram Saraf Shivpuri

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Page 136
________________ ( ११७ ) पर ही मांसाहार का आरोप लगाते हुए "भगवान बुद्ध" नामक पुस्तक में आचारांग सूत्र का यह उद्दरण दिया है-- "से भिक्य्व वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण जाणेज्जा बहु अट्ठियं मंसंवा मच्छंवा बहुकंटकं अरिमं खलु पडिगाहितंसि अप्पे सियामोयणजाए बहुउज्झिय धम्मिए । तहप्पगारं बहुअद्वियं वा मंसं, मच्छंवा बहुकंटकं लाभेवि संते णो पडिगाज्जा । से भिक्खू वा भिक्षुणी वा गाहावइकलं पिंडवायपडियाए अणुपविजें समाणे परो बहुअट्ठिएण मंसेण मच्छण उवणिमंतेज्जा आइसंतो समणा अमिकंखसि बहुअद्वियं मंसं पडिगाहेत्तए ? एयप्पगारं णिधोसं सोच्चाणिसम्म से पुण्खमेव आलोएज्जा. आउसोत्ति वा भइणीत्ति वा णो खलु में कप्पइ बहुठ्ठियं मंसं पडिगाहेत्तए. अभिकंखसि से दाडंजावइयं तावइयं पोग्गलं दलयाहि मा अट्ठियाई। से सेवं वदंतस्य परो अमिहठ्ठ अन्तो पडिग्नहगंसि बहुअट्ठियां मंसं परिभाएत्ता णिहट्ट दलएज्जा, तहप्पगारं पडिग्गहगं परहत्थंसि वा परपासि वा अफासुगं अणेसणिज्जलाभे संते जाव णो पडिगाहेज्जा। से आहच्च पडिगाहिए सिया, तं णो "हि" ति वएज्जा, णो “अहि"त्ति वइज्जा। सि-तमायाए एगत मवक्क मेज्जा। अवक्कमेत्ता अहे आरामंसि वा अहेउवस्सयंसिवा अप्पंडए जाव संताणए मंसगं मच्छगं भोच्चा अट्ठियाइंकंटए गहाय से तमायाए एगंतमवक्क मेउजा। अवक्कमेत्ता अहेज्झामथं डिलंसि वा अहिरासिंसि वा किरासिंसि वातुसरासिंसि वा गोमयासिंसि वा अण्ण यरंसि वा तहप्पगार सि थंडिलंसि पडिलेहिय पडिलेहिय पमज्जिय पमज्जिय तओ संजयामेव पमविजय पमज्जिय परिवेज्जा। इसका अनुवाद इस प्रकार किया है “पुन: उस भिक्षु को या उस भिक्षुणी को बहुत हड्डियों वाला मांस या बहुत काँटों वाली मछली मिलने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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