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मुनि कहते चले आये हैं कि अहिंसा के लिये मांसाहार का त्याग आवश्यक है । क्या किसी को उस परमात्मा के प्राणियों का वध करने का अधिकार है ? क्या यह बहुत बड़ा अपराध नहीं ? मैं उन लोगों से सहमत नहीं जो कहते हैं कि मांस न खाने से शारीरिक बल घटता है ।"
करुणा मूर्ति श्रीमती मेनका गांधी अपना राजनीति में आने का कारण ही लोगों का कष्ट कम करना बताती हुई कहती है "इसी कारण से मैं शाकाहारी हूँ, मेरे इस शाकाहार का असर दूसरे भी कई लोगों को लगता है । मैं अभी बड़ौदा जिले के छोटा उदयपुर जैसे छोटे से गांव में गई थी तो वहां के राजा के वृद्ध काकाजी ने कहा मुझे ८५ वर्ष पूरे हो गये हैं लेकिन गये महीने ही मैंने आपसे प्र ेरणा लेकर माँसाहार छोड़ा है भारत देश ऊँचा उठ सके, इसके लिये कुछ कर गुजरने की तमन्ना है ।"
कई लोगों को ऐसा लगता है कि मेरे मन में मनुष्य की अपेक्षा पशुपक्षी का स्थान अधिक है ऐसा हरगिज नहीं हैं मेरे मन में तो मनुष्य का मूल्य भी उतना ही है । मनुष्य, पशु-पक्षी, वनस्पति सबका मूल्य समान है । मेरे लड़के को बचपन से ही मैंने ऐसी आदत डाली है कि नीचे देखकर चलना जिससे पाँव के नीचे चींटी न कुचल जाये । इसका अर्थ यह नहीं कि चींटी के लिये मैं पागल हैं । इसका अर्थ केवल इतना ही है कि सम्भव हो वहां तक किसी को पोड़ा नहीं पहुँचानी चाहिये "
काश ! मेनका देवी जैसी भावना भारत के जन-जन के मन में व्याप्त हो जाये तो आध्यात्मिक क्षेत्र में भारत का उज्जवल भविष्य दूर नहीं । जीवदया से सम्बन्धित कुछ महान विचारकों के कथन :
१.
सब धर्मों की यह शिक्षा है कि मनुष्य को हमेशा परमात्मा की इच्छा की ओर प्रवृत्त होना चाहिये । उसे बुराई के मुकाबले में नेकी ओर, अथवा पतन के विरुद्ध विकास की ओर रहना चाहिये । जो मनुष्य स्वयं को विकास के पक्ष में द्दढ़ रखता है, वह जानता है
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