Book Title: Vibhinna Dharm Shastro me Ahimsa ka Swarup
Author(s): Nina Jain
Publisher: Kashiram Saraf Shivpuri

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Page 166
________________ ४. "हर शहर और गाँव मुझे प्रभु ने हुक्म दिया है कि खुद फरियाद नहीं कर सकते । "" उन मासूमों पर रहम कर जो 'एडगर ए. गैस्ट | ५. नोबेल प्राइज विजेता निरामिष भोजी जार्ज बर्नाडे शॉ के नाम से कौन अपरिचित होगा ? आंग्ल देश में जन्म होने पर भी हमारे धार्मिक ग्रन्थों को पढ़कर अपने जीवन की दिशा बदल दी । एक भोज आयोजन में माँसाहारी भोजन को देखकर कहते हैं- मेरे पेट कब्रिस्तान नहीं । प्राणियों को मारकर खाना कहाँ की मानवता है ? दूसरों को मारकर आनन्द करना, यह आनन्द नहीं वरन् क्रूरता है।" ( १४७ ) अरे, इन धर्म ग्रंथों से तो वे इतने प्रभावित हुए कि अपने फूलदान में फूल रखना भी छोड़ दिया उनकी मान्यता बन गई थी कि फूलों में भी जीवन है अत: फूल तोड़ने से उन्हें दर्द होता है । क्या कभी हमने भी इतनी गहराई से अपने धर्म शास्त्रों का मनन किया है ? अफसोस है कि हम अपने ही खजाने का सदुपयोग नहीं कर रहे । विदेशियों की तरह भौतिक उन्नति करने में उनका अनुकरण करके हम 'फारवर्ड' तो बन गये क्या कभी पूज्य पुरुषों द्वारा आध्यात्मिक उन्नति हेतु दिये गये उपदेशों पर चलने के बारे में चिन्तन किया ? नहीं, करें भी क्यों ? क्योंकि वे तो पुरातन को प्राप्त हो चुके हैं । उनका अनुसरण करके हमें 'बैकवर्ड' थोड़े ही बनना है । मानव जो भी हो भौतिकता में मानव चाहे जितनी प्रगति कर ले उसे सच्चा सुख, सच्ची शांति कदापि प्राप्त न हो सकेगी यदि भौतिक साधनों में सुख निहित होता तो भगवान महावीर, गौतम बुद्ध राजपाट को त्याग अध्यात्मिक उन्नति हेतु प्रयासरत न होते । अब भी समय है चेतने का, स्वयं को जाग्रत करने का ज्ञानियों का कहना है - " उठो, जागो, नींद त्यागी, प्रमाद छोड़ो, सुपल का लाभ चूके नहीं ।" भगवान महावीर गौतम स्वामी से कहते हैं-समयं गोयम मा माया" अर्थात हे गौतम ! समय मात्र भी प्रमाद मत कर । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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