Book Title: Vibhinna Dharm Shastro me Ahimsa ka Swarup
Author(s): Nina Jain
Publisher: Kashiram Saraf Shivpuri

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Page 173
________________ परिशिष्ट "मगल समाटो की धार्मिक नीति पर जैन सन्तो आचार्यों एवं मुनियो का प्रभाव" पुस्तक के विषय में विद्वानो एवं पत्रपत्रिकाओ का अभिप्राय : १. प्रिय डॉ. नीना जी, आपने डबरा में अपनी थीसिस की जो मुद्रित प्रति दो थी उसे मैंने देख लिया है । यू तो प्रतिमास एक-दो थीसिस परिक्षणार्थ आती रहती हैं, पर आपने जैसा प्रामाणिक और महत्व कार्य किया वैसा कदाचित् ही देखने को मिलता है। मैं इस कार्य पर मुग्ध हूँ। पाली, प्राकृत, संस्कृत और मामूली फारसी, उर्दू जानने के कारण मैं इस कार्य को महत्ता को अन्य लोगों की अपेक्षा अधिक गम्भीरता से आँक सकता हूँ। इतनी सारी मूल स्त्रोत सामग्री एकत्र कर लेना सरल काम नहीं है, खास कर ऐसी सामग्री जिसे कभी किसी ने छुआ तक नहीं । .............. का काम पारम्परिक ढंग का है--चालू किस्म का । आपका प्रबन्ध सर्वथा मौलिक । परिशिष्ट बहुत उपयोगी हैं । आपके गुरुओं के प्रति मेरा आदर जगा है । आपने औरंगजेब तक का काल ले लिया होता तो और अच्छा होता। मैं आपके यशस्वी भविष्य की कामना करता हूँ। (१) आचार्य हेमचन्द्र, (२) कुन्दकुन्दाचार्य और उमास्वाति पर मेरे निर्देशन में कार्य हुआ है। सस्नेह ! ई २/७३, महावीर नगर डॉ. प्रभुदयाल अग्निहोत्री भोपाल-४६२०१६ भूतपूर्व उपकुलपति दिनांक १-६-९२ जबलपुर विश्वविद्यालय Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org

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