Book Title: Vibhinna Dharm Shastro me Ahimsa ka Swarup
Author(s): Nina Jain
Publisher: Kashiram Saraf Shivpuri

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Page 178
________________ ( १५९ ) उपदेश देने में है। गुरू की कृपा से सम्राट के हृदय में यदि एक बात भी वैठ जाती है, तो हजारों ही नहीं, बल्कि लाखों मनुष्य उसका अनुसरण करने लग जाते हैं।" लेखिका कु. नीना जैन ने ग्रन्थ के प्रारम्भ में श्वेताम्बर जैन आम्नाय की ऐसी अनेक बातें विवेचित की हैं, जिनका ज्ञान सामान्य पाठक को नहीं होगा। उसके बाद अकबर की धार्मिक नीति का विस्तार से विचार किया गया है। अपने समय के सूफी सन्तों, हिन्दू पण्डितों, ईसाई और पारसी धर्मज्ञों, जैन सन्तों आदि से प्रभावित होकर और इस्लाम के कट्टर पंथी मुल्लाओं, उलेमाओं आदि के पारस्परिक झगड़ों से क्षुब्ध होकर अकबर अपनी धार्मिक नीति को बदलने के लिये प्रेरित हुआ था। हिन्दू तीर्थ यात्रियों से उस समय तीर्थ यात्रा कर वसूल किया जाता था अकबर ने एक आदेश निकालकर इस तरह की कर वसूलौ को समाप्त किया। वह कहा करता था कि “चाहे कोई गलत धर्म के मार्ग पर चलता हो, परन्तु यह कौन जानता है कि उसका मार्ग गलत ही है। ऐसे व्यक्ति के मार्ग में बाधा उत्पन्न करना उचित नहीं है।" उसने मुस्लिम नेताओं व उलेमाओं आदि के कड़े विरोध की परबाह न करके जजिया कर की वसूली समाप्त कर दी। इस्लामेतर धर्मावलम्बियों को अपने धर्म स्थानों व पूजा स्थलों के निर्माण की स्वतंत्रता उसने दी और हिन्दुओं तथा जैनियों को उच्च पदों पर नियुक्त किया। आचार्य हीरविजय सूरी के निवेदन पर अकबर ने "जैन धर्म के पर्युषण पर्व के अवसर पर फरमान निकालकर सारे राज्य में बारह दिनों के लिए जीव-हिंसा की मनाही कर दी। फतेहपुर सीकरी के तालाब से मछलियाँ न पकड़ी जायें. इस आशय का हुक्म भी उसने दिया था।" उसने सप्ताह के कुछ दिन ऐसे तय कर दिये थे, जिनमें उसके भोजन में माँस से बने हुए पदार्थ नहीं होते थे। चितौड़ युद्ध और उसके बाद अकबर ने जो कत्लेआम कराया था उस पर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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