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आज हम प्रत्येक तर्क को धर्म की अपेक्षा वैज्ञानिक कसौटी पर कसना चाहते हैं यद्यपि यह अनुचित भी नहीं लेकिन अफसोस तो इस बात का है कि वैज्ञानिक प्रमाण सामने आने पर भी आज २१ वीं सदी का मुख्य आहार अण्डा माना जाने लगा है। आज यह कहने में संकोच नहीं कि अधिकांश प्रशासक वर्ग ही हिंसक वृत्ति वाला है अत: उन्हीं के निर्देशन में घोर हिंसा हो रही है।
जहाँ पाश्चात्य देश अण्डे से होने वाली हानियों को जानकर इसे त्याग रहे हैं, वहीं भारत इनका सेवन कर आधुनिकता की ओर बढ़ रहा है। सरकार पोलल्ट्री फार्मों को खोलने में मदन करती है जहाँ ये मुर्गियां स्वेच्छा से अण्डा नहीं देती बल्कि उन्हें विशिष्ट हार्मोन्स और एन्टीबायटिक इंजेक्शन दिये जाते हैं जिनके कारण वे लगातार अण्डे दे पाती हैं । अण्डे में उपस्थित पीले रंग की जर्दी अधिक आकर्षक और चटकीली दिखे इसके लिये एक हानिकारक रसायन “साइट्रानार्क सेनिधिन" मुर्गियों को दिया जाता है । ___मानव जाति तो पशु से भी बदतर हो गई। कई पशु-पक्षी जातियाँ ऐसी हैं जो आजीवन वनस्पतियाँ और घास-भूसा खाकर ही जीवन निर्वाह करती हैं । गाय, भैंस, घोड़ा, ऊँट, बकरी, कबूतर, तोता आदि शाकाहारी जीवन जीते हैं । शाकाहारी भोजन के अभाव में वे भूखे चाहे रह जाये लेकिन मांस जैसी घिनौनो चीजों का भक्षण कदापि नहीं करते।
कुछ बुद्धिहीन यह कुतर्क देते हैं कि भगवान ने बकरे-बकरी, गाय-भंसे, मुर्गी, मछली, अण्डे आदि खाने के लिए ही तो पैदा किये हैं। बढ़ती हुई जनसंख्या में खाद्य-सामग्री की पूर्ति में वे मांस भोजन को अनिवार्य मानते हैं । रसनेन्द्रिय के वशीभूत होकर तक देते हैं कि निरामिष भोजन की उपज अपर्याप्त है । यदि माँसाहारी न होते तो अनाज एवं हरी साग सब्जयों के अभाव में शाकाहारी भूखे मर जाते । अतः वे मांसाहार करके अन्नादि बचाने का पुण्य कार्य ही करते हैं। इस प्रकार का अनर्गल प्रलाप करने वाले शायद इस तथ्य से अनभिज्ञ हैं कि लगभग दो लाख ठन प्राणिज प्रोटीन
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