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( १४२ ) का प्रचार कर रहे हैं। "वनस्पति का आहार ही मनुष्य जाति के लिये अधिक लाभदायक है।" इस मत के अनुयायी पाश्चात्य देशों में प्रतिदिन बढ़ते ही जा रहे हैं । खास तौर पर इन सोसाइटियों द्वारा जनता में दो बातों का प्रचार किया जाता है
१. मांसाहार से शारीरिक तन्दुरुस्ती का नाश होता है । ___२. पशुओं के संहार से मनुष्यों को आर्थिक दृष्टि से भी बहुत हानि उठानी पड़तो है।
स्पष्ट है कि यदि धार्मिक विचार को पृथक रखा जाये तो भी माँसाहार सर्व प्रकार से अनुचित एवं हानिकारक हैं ।
अधिक क्या कहा जाये, आज तो यह भी करने में संकोच नहीं कि हम हृदय-होन और बधिर हो गये हैं। हजारों पशु चीत्कार करते हैं किन्तु उनका करूण क्रन्दन हमें सुनाई ही नहीं देता। आजकल अरब में गौ-माँस की माँग अत्याधिक बढ़ी हुई है। भारत के गौ-मांस की कीमत वहाँ दस गुनी मिलती है । अरबियों को जवान पशुओं का बढ़िया कोमल माँस चाहिए। जिसके लिये भारत के सभी प्रान्तों में कानूनी, गैर-कानूनी तौर से लाखों गाय-बैलों को मारा जाता है। कहाँ लुप्त हो गये हमारे शास्त्रों के यह उपदेश
“घोड़े को मत मारो ! गाय को मत मारो ! भेड़ को मत मारो! इस दो पैर वाले पशु को अर्थात् मनुष्य अथवा पक्षी को मत मारो। एक खुर वाले घोड़ा, गदहा आदि पशुओं को मत मारो। किसी भी प्राणी की हिंसा मत करो।"१
"प्राणियों की तरफ से बेपरवाह मत होओ।"२
१. यजुर्वेद-अध्याय १३, श्लोक ४७-४८ २. अथर्ववेद -कांड ८, सूत्र १, मंत्र ७
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