________________
( १२४ ) पीड़ा सहन करना कठिन था। उसी के साथ भगवान को रक्तातिसार (खून की पेचिश) हो गया। भगवान के रोग से सम्बन्धित कुछ प्रमाण यहाँ देते हैं"मेण्डिक ग्राम नगरे विहरतः पित्तज्वरो दाह बहुलो बभूव लोहित वर्चश्च प्रावर्ततः।"१ "स्वामी तु रक्तातिसार पित्तज्वर वशात् कृशः।"२ . "समुप्पलो पित्तजरो तस्वसेण य पाउठभू ओ रूहिरा इसारो।"३ "ततः प्रभो षणमासी यावदती सारोऽजानि । तस्मिन्नती सारेऽत्यर्थ जायमाने ।" "गोशालक विनिर्मुक्त तेजोलेश्याऽति सारिणः।"५ "समणरस भगवओ महावीरस्य सरीरगंसि विपुले रोगायं के पाउन्भूए उउजले जाव दुरहिया से पित्तज्जर परिगय सरीरे दाह वक्कंतीए याविविहरति आवियाई लोहिय वच्चाईपिपकरेइ।"६
ये प्रमाण स्पष्ट करते हैं कि भगवान पित्त ज्वर, दाह और रक्तातिसार से पीड़ित थे। भगवान को खून के दस्त लगते थे यह तो कौसम्बी ने भी स्वीकार किया है। पीड़ा का निदान :
रोग के लक्षण जान लेने पर यह देखना है कि क्या इस स्थिति में माँस उसकी दवा हो सकती है ?
१. ठाणांग सूत्र सटीक, उत्तरार्ध पृष्ठ ४५७ २. त्रिषष्ठिशलाका पुरुष चरित्र-हेमचन्द्राचार्य पर्व १०, सर्ग ८,
__ श्लोक ५४३ ३. महावीरचरियं-गुणचन्द्रगणि रचित पृ. २८२ ४. भरतेश्वर बाहुबलि वृत्ति-भाग २, पृ. ३२९ ५. दानप्रदीप-नवम प्रकाश, श्लोक ४९९ ६. भगवतो सूत्र सटीक खण्ड ३, शतक १५, पृ. ३९२
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org