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( १३२ ) भाषा में भ्रम पैदा होने का एक कारण यह भी है कि भगवान महावीर का प्रवचन जन साधारण की भाषा (प्राकृत) में था। उनकी वाणी लिपिवद्ध की गई उनके सैकड़ों वर्षों पश्चात्, और लिपिबद्ध करने का स्थान उस स्थान से सैंकड़ों मील दूरी पर यू. पी. में मथुरा और सौराष्ट्र में बल्लभी था । आज जब १२ कोस की दूरी पर भाषा बदलने के साथ ही अर्थ भी बदल जाता है तो क्या यह सम्भव नहीं कि सैंकड़ों मीलों को दूरी में भाषा न बदली हो । यह भी सम्भव है कि एक ही शब्द का भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न अर्थ लिया जाता है। उदाहरणार्थ-वर्तमान में गुजरात में मीठू नमक को कहा जाता है जबकि हिन्दी भाषी स्थानों में मीठ का अर्थ तोते से लिया जाता है । अत: हमें उस काल के इन अर्थों को मिलाने के लिये जैन साहित्य के साथ-साथ वैदिक, बौद्ध, कोश तथा आयुर्वेदिक ग्रन्थों को देखना चाहिये।
___ भगवान महावीर के पश्चात् अहिंसा के महान उपासक महात्मा गाँधी द्वारा स्थापित अहमदाबाद में गुजरात विद्यापीठ में बैकर उन्हीं के सिद्धांतों की चीरा-फाड़ी करने वाली चंडाल-चौकड़ी जो वहाँ इकट्ठी हुई थी, जिनमें गोपालदासे जीवाभाई पटेल, श्रीयुत धर्मानन्द कौसम्बी, प्रज्ञाचक्षु पं. सुखलालजी एवं बेचरदासजी आदि प्रमुख थे। इन लोगों ने जैन साहित्य पर कार्य करते समय इन अर्थों का अनर्गल अर्थ कर दिया जिसे धर्मानन्द कौसम्वो ने अपनी “भगवान बुद्ध" पुस्तक में, स्वीकार भी किया है। उसी पुस्तक के भूमिका लेखक काका कालेलकरजी ने इन शब्दों को स्पर्श तक नहीं किया । अत: मुझे अफसोस के साथ लिखना पड़ रहा है कि जिन लोगों ने इन शब्दों का अनर्थ किया है उन्हें अपनी विद्वता का अजीर्ण हो गया था। मैंने अपनी तुच्छ बुद्धि से जो कुछ लिखा उसका निर्णय पाटकों पर छोड़ती हूँ।
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