Book Title: Vibhinna Dharm Shastro me Ahimsa ka Swarup
Author(s): Nina Jain
Publisher: Kashiram Saraf Shivpuri

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Page 155
________________ ( १३६ ) ३. मच्छीमारी का धन्धा करने वाले मच्छीमार को एक साल में जितने पाप कर्म का बन्ध होता है, उतना पाप का बन्ध बिन छने पानी का संग्रह करने वाले को होता है । ४. जो छने पानी से कार्यं करता है वह मुनि है, वह महासाधू है, वह योगी है, वह महाव्रती है। ५. अठारह देशों के स्वामी राजा कुमारपाल ने अपने ग्यारह लाख घोड़े आदि जानवरों को पानी छानकर पिलाने का प्रबन्ध किया था । ६. बिना छने पानी में प्रतिसमय दो इन्द्रियादि त्रसकाय सम्मूच्छन जीव निरन्तर स्वभाव से ही उत्पन्न होते रहते हैं और आयु पूर्ण कर मरण को प्राप्त होते रहते हैं। मनु का कथन भ है - "वस्त्र पूतं जलं पिबेत्” अर्थात् वस्त्र से छानकर जल पीना चाहिये । आज पानी छानकर पीने का विधान तो एक ओर रहा, ज्ञान-विज्ञान को भी ताक में रख दिया गया है । स्वार्थ सिद्धि के लिये मानव अपनी बुद्धि को ही सर्वोपरि मानने लगा है । अहिंसा की आड़ में हिंसा के प्रचार हेतु तर्क देता है कि मुर्गी के अण्डे में जीव नहीं है । हास्यास्पद नहीं तो और क्या फिर भी अण्डा पैदा हो जाये है ? मुर्गे के वी मुर्गी को कुक्षि में न रहें, तो संयोग बिना ही मुर्गी को वर्षो तक प्रतिदिन अण्डा देना चाहिये । परन्तु ऐसा न कभी हुआ और न ही हजार प्रयत्न करने पर होगा । इस बात को भली-भाँति जानते हुए भी सरकार द्वारा यह प्रचार कि 'अण्डे शाकाहारी हैं' अथवा 'सण्डे हो या मण्डे रोज खाओ अण्डे' कितनी विडम्बना है ? इस प्रकार के अनर्गल प्रचार से भ्रमित हुए लोगों की बुद्धि पर तरस खाते हुए यह कहने में संकोच नहीं कि "यस्य नास्ति स्वयं प्रज्ञा, शास्त्रं तस्य करोति किं" अर्थात् जिसको स्वयं की बुद्धि नहीं होती, शास्त्र उसका क्या करे ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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