________________
( ११२ )
" हिंसा करने वाला, झूठ बोलने वाला, छल-कपट करने वाला, चुगली करने वाला और धूर्तता करने वाला तथा मदिरा और माँस खाने वाला मूर्ख अज्ञानी जीव इन उक्त कामों को श्रेष्ठ समझता है ।" १
" मदिरा और माँस का सेवन करने वाला बलवान होकर दूसरे का दमन करता है, जैसे- पुष्ट हुआ वह बकरा अतिथि को चाहता है, उसी प्रकार कर्कर करके बकरे के मांस को खाने वाला तथा जिसका पेट रुधिर और माँस के उपचय से बढ़ा हुआ है ऐसा जीव अपना वास नरक में चाहता है ।"२
“मुझे मांस अत्यन्त प्रिय था, इस प्रकार कहकर उन यम पुरुषों ने मेरे शरीर के माँस को काटकर, भूनकर और अग्नि के समान लाल करके मुझे अनेक बार खिलाया । " ३
" जो रस गृद्ध होकर माँस का भोजन करता है, वह अज्ञानी पुरुष केवल पाप का सेवन करता है । जो कुशल पण्डित है, वह ऐसा नहीं करता
८
माँस भक्षण से दोष नहीं हैं", ऐसी वाणी पण्डित नहीं बोलता । " ४
आचारांग सूत्र में तो साधू को उस स्थान पर जाने का ही निषेध किया गया है जहाँ माँसादि मिलने की आशंका हो । कहा गया है कि “गृहस्थ के घर भिक्षा के लिये जाते हुए मुनि को यदि ज्ञात हो जाये कि यहाँ माँस वा मत्स्य अथवा मद्य वाले, भोजन मिलेंगे तो मुनि को उधर जाने का इरादा नहीं करना चाहिये ।"५
माँसाहार को नरक प्राप्ति का कारण बताते
गया है
१.
उत्तराध्ययन - अध्याय ५, गाथा ९ २. वही - अध्याय ७, गाथा ६-७
३. वही - अध्याय १९, गाथा ७०
हुए ठाणांग
Jain Education International
४, सूत्रकृतांग - श्र तस्कन्ध २, अध्याय ६, गाथा ३९
५. आचारांग सूत्र - श्र तस्कन्ध २, अध्याय १०, उद्ददेशक ४, सूत्र ५६१
---
सूत्र में कहा
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org