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“इन चार कारणों से जीव नारक योग्य कर्म बाँधता है - १. महारम्भ, २. महापरिग्रह, ३. पंचेन्द्रिय वध, ४, माँसाहार ।" १
गौतम के प्रश्न करने पर भगवान महावीर कहते हैं - महाआरम्भी, महापरिग्रही, माँसाहार एवं पंचेन्द्रिय वध करने वाला नरक गामी होता है ।"२
विपाक सूत्र के चतुर्थ अध्याय में वर्णित है कि छणिक नामक छागलिक माँस-विक्रेता और भक्षक चतुर्थ नरक में गया । इसी सूत्र के आठवें अध्याय में उल्लेख मिलता है कि श्रीयक नामक माँस भोजी रसोइया काल करके छटवें नरक में गया ।
राजा श्रेणिक के बारे में सूक्त मुक्तावलि में व्यसन सम्बन्धि सूक्तों में एक श्लोक में कहा गया है कि माँस के कारण श्रेणिक राजा नरक में
गया ।
हेमचन्द्राचार्य ने माँसाहार के सम्बन्ध में सुभूम और ब्रह्मदत्त का उदाहरण देते हुए बताया है कि दोनों माँसाहारी सातवी नरक में गये | ३ योग शास्त्र की टीका में सुभूम और ब्रह्मदत्त की कथा विस्तार से दी गई है ।
माँसाहार तो दूर 'जैन-शास्त्रों में तो उससे सम्बन्धित व्यक्ति को भी पाप का भागी कहा गया है । हेमचन्द्राचार्य लिखते हैं- "मारने वाला, मांस को बेचने वाला, पकाने वाला, खाने वाला, खरीदने वाला, अनुमति देने वाला तथा दाता ये सभी घातक है, ऐसा मनु का वचन है ।४ इसीलिये वे आगे लिखते हैं- "जीवों के घात के बाद, तत्काल उत्पन्न होते सम्मूर्छित
१. ठाणाँग सूत्र - अध्याय ४, उद्द ेशक ४, सूत्र ३७३
२. भगवती सूत्र - शतक ८, उद्देशा ९, सूत्र ८०
श्लोक २७
३. योगशास्त्र - प्रकाश २, ४. वही - प्रकाश ३, श्लोक २०
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