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( ११० ) स्मरणीय रहे कि चमलौंग पूर्णतया गाँधीवादी प्रवृत्ति के नेता हैं शुद्ध शाकाहारी एवं खद्दरधारी हैं। उनके अनशन पर बैठते ही पूरा देश उनके पीछे हो लिया । ५ मई १९९२ को हुई रैली में करीब डेढ़ लाख लोगों ने चमलौंग का साथ दिया। शान्तिपूर्वक चलने वाले आन्दोलन का रुख उस समय बदल गया जब १८ मई, को अपरान्ह में प्रदर्शनकारियों का मुकाबला करने के लिये “बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स" को तैनात कर दिया गया । १८ मई की रात को सैनिकों ने प्रदर्शनकारियों पर अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी तथा चमलौंग को हथकड़ी लगाकर अज्ञात स्थान पर भेज दिया गया।
आखिर जनता की कुर्बानी रंग लायी। २० मई की रात को थाईलैण्ड के राजा श्री भूमि बोल अदुल्य देज ने जनरल सुचिंदा, मेजर जनरल चमलौंग एवं भूतपूर्व प्रधानमन्त्री जनरल प्रेम की आपातकालीन बैठक बुलाई । २५ मई को संसद का अधिवेशन बुलाकर यह फैसला हुआ कि प्रधानमन्त्री संसद सदस्य ही होना चाहिए।
क्या यह थाईलैण्ड में अहिंसा की जीत नहीं कहलायेगी ?
उपरोक्त प्रमाणों के आधार पर हम नि:संकोच कह सकते हैं कि यदि विश्व में कोई कल्याण का पथ है तो वह अहिंसा ही है। आज जो विश्व में विपत्ति और संकट का नग्न नृत्य दिखाई दे रहा है उसका मूल कारण यही है कि लोगों में "आत्मवत् सर्वभूतेषु" की भावना प्रसुप्त हो गई है और उसके स्थान पर स्वार्थ साधन की जघन्य एवं सकीर्ण दृष्टि जाग्रत हो उठी है। आज जिस उन्नति का उच्चनाद सर्वत्र सुन पड़ता है वह आत्म जागरण अथवा सच्ची जीव रक्षा की उन्नति नहीं है किन्तु प्राणघात के कुशल उपायों की वृद्धि है।
अहिंसा की समस्त मर्यादाओं को आज जीवन से निकाल दिया गया है यही कारण है कि आज हमें अहिंसा भगवती के चमत्कार दृष्टिगोचर नहीं होते । हों भी कैसे ? किसी औषध का सेवन किये बिना उसकी कार्य शक्ति का बोध कैसे हो सकता है ? आज अहिंसा केवल हमारे कण्ठ पर ही निवास कर
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