________________
( १०८ )
जैन ग्रन्थों में ऐसे अनेकों प्रसंग आते है जब श्रमणियां भिक्षा के लिये पर्यटन करतो थी तो नगरी के तरूण जन उनका पीछा करते थे उनके साथ हँसी-मजाक करते थे। ऐसे आपद्धर्म के अवसर पर बताया गया कि अस्त्रशस्त्र में कुशल तरूण साधू श्रमणी के वेष में जाकर उद्दण्ड लोगों को अमुक समय पर अमुक स्थान पर मिलने का संकेत देकर उन्हें समुचित दण्ड दे ।१
__ सुकुमालिया साध्वी की कथा भी शास्त्रों में आती है। जो अत्यन्त रूपवती थी, अत: भिक्षा के लिए जाते समय तरूण लोग उसका पीछा करते थे और कभी-कभी तो उपाश्रय में ही प्रवेश कर जाते थे। आचार्य को जब यह मालुम हुआ तो उन्होंने सुकुमालिया के साधू भ्राताओं को बहन की रक्षा हेतु नियुक्त किया। दोनों भाई राजपुत्र होने के कारण सहस्त्र योधी थे, अतएव जो कोई उनकी बहन से छेड़-छाड़ करता उसे वे उचित दण्ड देते थे।
ये तो रहे प्राचीनकाल के कुछ उदाहरण । वर्तमान में भी जब से भारत ने अहिंसा के बल पर स्वतन्त्रता प्राप्त की है तब से अहिंसा के महत्व की महिमा सर्वत्र सुनाई पड़ती है। विश्व के अप्रतिम विद्वान जार्ज बर्नाड शॉ जैन तत्व ज्ञान पर अत्यन्त अनुरक्त प्रतीत होते हैं, जब वे जन अहिंसा के सिद्धान्त को शिरोधार्य कर श्री देवदास गांधी से कहते हैं--"जैन-धर्म के सिद्धान्त मुझे अत्यन्त प्रिय हैं। मेरी आकांक्षा है कि मृत्यु के पश्चात मैं जैन परिवार में जन्म धारण करू। गाँधीजी के विचारों पर तो जैन-धर्म का गहरा प्रभाव था ही। इस एटम के युग में भी अहिंसा के प्रति उनकी अपूर्व निष्ठा को देखकर पश्चिम के बड़े-बड़े विद्वान गांधीजी को जैन-धर्म का अनुयायी मानते हैं।
भारतीय गणतन्त्र शासन के अध्यक्ष डॉ. राजेन्द्र प्रसाद द्वारा दिया गया सन्देश बड़ा उद्बोधक है कि “जैन-धर्म ने संसार को अहिंसा की शिक्षा
१. बृहत्कल्पभाष्य---भाग २, पृष्ठ ६०८
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org