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( २५ ) महाभारत में अहिंसा की प्रशंसा एवं माँस-भक्षण त्याग की महिमा :
किसी समय युधिष्ठिर बृहस्पति जी से पूछते हैं-अहिंसा, वेदोक्त कर्म, ध्यान, इंद्रिय संयम, तपस्या और गुरू शुश्रु षा इनमें से कौनसा कर्म मनुष्य का विशेष कल्याण कर सकता है ? प्रत्युत्तर में बृहस्पति जी कहते हैं-जो मनुष्य अहिंसा युक्त धर्म का पालन करता है वह मोह, मद और मत्सरता रूप तीनों दोषों को अन्य समस्त प्राणियों में स्थापित करके एवं सदा काम क्रोध का संयम करके सिद्धि को प्राप्त हो जाता है । भीष्म पितामह भी अहिंसा की प्रशंसा करते हुए कहते हैं-मन, वाणी, कर्म से हिंसा न करना एवं मांस न खाना इन चार उपायों से अहिंसा धर्म का पालन होता है। इनमें से किसी एक अंश की भी कमी रह जाने पर अहिंसा धर्म का पूर्णत: पालन नहीं होता।
वास्तव में अहिंसा धर्म तो इतना विस्तृत है कि उसमें सभी धर्मों का समावेश ठीक उसी प्रकार से हो जाता है जिस प्रकार हाथी के पैर के चिन्ह में सभी पादगामी प्राणियों के पद चिन्ह समा जाते हैं । महाभारत में कहा है "अहिंसा परम धर्म है, अहिंसा परम तप है, अहिंसा परम सत्य है क्योंकि उसी से धर्म की प्रवृत्ति होती है ।''१ ___ जगत में अपने प्राणों से अधिक प्रिय कोई दूसरी वस्तु नहीं है अत: मनुष्य जैसे अपने पर दया चाहता है वैसे ही दूसरों पर भी दया करे। जो जीवित रहने वाले प्राणियों के मांस को खाते हैं वे दूसरे जन्म में उन्हीं प्राणियों द्वारा भक्षण किये जाते हैं । उर्धाम्नाय संहिता में कहा है कि जो मनुष्य बकरे का नाश करता है उसका बकरा परजन्म में खडग को धारण करके हनन करता १. अहिंसा परमो धर्मस्तथाहिंसा परं तपः।
अहिंसा परम सत्यं यतो धर्म प्रवर्तते ।। अनुशासन पर्व अध्याय ११५, श्लोक २३
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