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पारसी धर्म एवं अहिंसा
पारसियों के विषय में लिखने हेतु विशेष साहित्य तो मुझे उपलब्ध नहीं हुआ, जो कुछ भी प्राप्त हुआ उससे स्पष्ट होता है कि पारसी धर्म के संस्थापक जरथुस्त *(प्रारम्भिक नाम स्पितम) के जन्म के समय ईरान की परिस्थितियां वैसी ही थीं जैसी कृष्ण, महावीर, बुद्ध, नानक के समय भारत की।
पारसी भारत में मुसलमानों से पूर्व आये । मूल रूप से सूर्य व अग्नि के उपासक हैं । आज भी इनके मंदिरों में अग्नि निरन्तर प्रज्वलित रहती है । ऐसी मान्यता गुजरात में हैं कि जब ये सर्वप्रथम भारत में आये, यहां बसने की सूरत के राजा से अनुमति मांगी तो राजा ने इस शर्त पर अनुमति दी कि भारत में तुम गायों की रक्षा करोगे।
जोव-हिंसा न करने का विधान भी इनमें है । इनके सर्वमान्य 'गाथा' में स्पष्ट दिखलाया है कि जीव जन्तुओं का खास करके रक्षण करना चाहिये। पशु-हिंसा को निन्दनीय कृत्य बताते हुए उन पर अनुकम्पा करने का उपदेश दिया गया है । कहा गया है - ' गाय, आदि का पालना करना, उनको चारापानी देना, हिंसक पशुओं से रक्षा करने से, उसको ईश्वर का आशीर्वाद मिलता है। प्राणी-मात्र की तरफ दया और सहानुभूति से जो देखता है उसी को महात्मा जरथुस्त ने अहिंसा में माना है ।"१
*सोने के रंग का प्रकाश धारण करने वाला १ अशो जरथुस्त पृष्ठ १५-१६
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