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( ६५ ) संयुक्त निकाय के कोसल संयुक्त में जो ९वा सुत्त (
यसुत्त) है उससे विदित होता है कि जब भगवान श्रावस्ती में थे तब कौशल राजा प्रसेनजित की ओर से एक महायज्ञ होने वाला था। पांच सौ बैल, पाँच सौ बछड़े, पांच सौ बछिया, पांच सौ बकरियाँ और पांच सौ भेड़ सभी यज्ञ के लिये यूप में बंधे थे। जो दास, नौकर और मजदूर थे वे भी लाठो और भय से धमकाये जाकर आंसू गिराते रोते तैयारियां कर रहे थे जब भिक्षुओं ने भगवान को यह सब बताया तो भगवान के मुंह से ये गाथाए निकली
अश्व मेध, पुरुष मेध, सम्यक पाश वाजपेय निरगल और ऐसी ही बड़ी-बड़ी करामतें
सभी का अच्छा फल नहीं होता है । भेड़, बकरे, और गौवें तरह-तरह के जहां मारे जाते हैं सुमार्ग पर आरूढ़ महर्षि लोग ऐसे यज्ञ नहीं बताते हैं जिस यज्ञ में ऐसी तुले नहीं होती हैं, सदा अनुकूल यज्ञ करते हैं भेड़, बकरे और गौ जहाँ तरह-तरह के नहीं मारे जाते सुमार्ग पर आरूढ़ महर्षि लोग ऐसे ही यज्ञ बताते हैं, बुद्धिमान पुरुष ऐसा ही यज्ञ करे, इस यज्ञ का महाफल है इस यज्ञ करने वाले का कल्याण होता है, अहित नहीं यह यज्ञ महान होता है देवता प्रसन्न होते हैं ।१
वैदिक काल में ऋषि-मुनि अरण्य में रहकर तपश्चर्या करते हुए भी बीच-बीच में सुविधानुसार छोटे-छोटे यज्ञ करते रहते थे। प्रमाण-स्वरूप याज्ञवल्क्य महान तपस्वी होते हुए भी राजा जनक के यज्ञ में भाग लेकर
१. संयुक्त निकाय - हिन्दी अनुवाद जगदीश कश्यप, धर्म रक्षित भाग १
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