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( ७५ ) विनय पिटक में जहाँ एक ओर बुद्ध ने जानबूझकर जीव-हिंसा में दोष बताया है, वहीं आगे चलकर इसी ग्रंथ में महावग्ग के भैषज्य स्कन्ध में कहा है--"भिक्षुओं अनुमति देता हूँ (अपने लिये मारे को) देखे, सुने, संदेह युक्तइन तीन बातों से शुद्ध मछली और माँस (के खाने) की।"
महावग्ग में भेसज्जक्खन्धकं के तरूणपसन्न महामत्त वत्थु सुत्त में लिखा हैकि भगवान साढ़े बारह सौ भिक्षुओं के साथ अंधकरविन्द की ओर चारिका के लिये जाते हैं। उस समय एक श्रद्धालु नौजवान महामात्य बुद्ध सहित भिक्ष संघ को निमंत्रण देता है । विचारता है क्यों न मैं साढ़े बारह सौ भिक्षुओं के लिये साढ़े बारह सौ माँस को थालियाँ तैयार कराऊँ और एक-एक भिक्षु के लिये एक-एक मांस की थाली प्रदान करूँ ? उत्तम खाद्य भोज और साढ़ बारह सौ मांस की थालियां को तैयार करा भगवान को सूचना देता है, बुद्ध संघ सहित उसे खाते हैं।
जब देवदत्त के मन में बुद्ध के संघ-भेद का विचार आता है तब वह बुद्ध के पास जाकर जो पांच वस्तुएँ मांगता है उसमें पांचवी वस्तु यही है-जिन्दगी भर मछली-माँस न खाये, जो मछलो-माँस खाये उसे दोष हो। उसे पता था कि श्रमण गौतम इसे स्वीकार नहीं करेंगे तब हम इन बातों से लोगों को समझायोंगे । बुद्ध देवदत्त से कहते हैं-अद्दष्ट १, अश्रु त २, अपरिशंकित ३ इस तीन कोटि से परिशुद्ध माँस की भी मैंने अनुज्ञा दी है।४ ____ महावग्ग के भेसज्जक्खन्धकं के सिंह सेनापति वत्थु सुत्त में वर्णन आता है-सिंह सेनापति भगवान को भोजन के लिए आमन्त्रित करता है। भगवान स्वीकृति जान सिंह सेनापति एक आदमी से कहता है-"गच्छ, भणे. पवत्त१. मेरे लिए मारा गया—यह देखा न हो। २. मेरे लिए मारा गया-यह सुना न हो। ३. मेरे लिए मारा गया-यह सन्देह न हो । ४. बिनय पिटक -सँघ-भेद स्कन्धक ।
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