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( ७८ ) धर्मानन्द कोसम्बो ने भी अंगुत्तर निकाय के पंचक निपात का हवाला देते हुए यही कहा है कि भगवान बुद्ध सूकर का मांस खाते थे, उग्ग गहपति कहता है “भदन्त, बढ़िया सूअर का यह मांस उत्कृष्ट ढंग से पकाकर तैयार किया हुआ है. मुझ पर कृपा करके भगवान उसे ग्रहण करे, भगवान ने कृपा करके वह मांस ग्रहण किया ।"१
यद्यपि बुद्ध ने बौद्ध भिक्षओं के लिये भोजन में माँस लेने का निषेध नहीं किया और स्वयं भी मांस भोजन करते थे तथापि अंतिम भोजन सूकर-मद्दव अर्थात् सूअर का मांस था यह बात तो सत्य से कुछ परे ही प्रतीत होती है । कारण को मद्दव शब्द माँस के अर्थ में प्रयुक्त होने का कोई प्रमाण प्राप्त नहीं होता। ऐसा लगता है कि मात्र सूकर शब्द के साहचर्य से ही सूकर मद्दव को सूअर का मांस मान लिया गया है । और अपने अन्तिम चातुर्मास में बुद्ध को एक भयंकर बीमारी हुई थी। यद्यपि बीमारी क्या थी इसका कहीं स्पष्टीकरण नहीं मिलता है; फिर अस्सी वर्ष की अवस्था में रोग मुक्त होकर बुद्ध सूअर का मांस खा सकते हैं क्या ?
___ हमारी समझ में तो सूकर मद्दव शकरकन्द का पाक (हलवा) हो सकता है । यह बड़ा मधुर कन्द होता है स्वादिष्ट होने के कारण ही बुद्ध ने इसे अलग से तैयार करवाया होगा। घी,शक्कर आदि डालकर पकाने पर गरिष्ठ हो जाने के कारण बुद्ध की दुर्बल आँतें उसे पचा न सकी । बुद्ध ऐसी उत्तेजक चीजें डालकर बनाये भोजन को अपने भिक्षु-संघ को नहीं खिलाना चाहते थे शायद इसीलिये चुन्द को बुलाकर कहते हैं--“हे चुन्द देव, मार और ब्रह्मा से युक्त इस लोक में श्रमण ब्रह्मणात्मक प्रजा में तथा देव और मनुष्यों में ऐसा मैं किसी को नहीं देखता कि तथागत के बिना दूसरा कोई इस सूकर
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१. भगवान बुद्ध - कोसम्बो पृ० २६८
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