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( ७१ )
सुख के चाहने वाले हैं, इनका जो दण्ड से घात नहीं करता है, वह अगले में सुख को प्राप्त करता है ।" १
जन्म
" त्रस और स्थावर को मारने की मानसिक, वाचिक, कायिक प्रवृत्तियों को छोड़कर न स्वयं प्राणिघात करता है और न दूसरों से करवाता है, मैं उसे ब्राह्मण कहता हूँ ।"२
" जैसा मैं हूँ वैसे ये हैं, जैसे ये हैं वैसा मैं हूँ इस प्रकार आत्म सद्दश मान कर न किसी का घात करे न करवाये । ३
" जो न स्वयं किसी का घात करता है, न दूसरों से करवाता है, न स्वयं किसी को जीतता है वह सर्व प्राणियों का मित्र होता है उसका किसी के साथ बैर नहीं होता । ४
" सर्व जीव दंड से त्रस्त होते हैं, सब मृत्यु से भयभीत होते हैं अत: अपनी आत्मा का उपमान करके न किसी प्राणी को मारना चाहिये न मरवाना चाहिए; सब जीव दंडसे त्रस्त होते हैं सबको जोवन प्रिय है अत अपनी आत्मा का उपमान करके न किसी प्राणी को मारना चाहिये न मरवाना चाहिये ।" ५
"जिस कार्य के करने से पर प्राणों की हिंसा होती है उस कार्य के करने से कोई आर्य नहीं बनता । सब प्राणों का अहिंसक ही आर्य नाम से पुकारा जाता है । ६
१ उदानं सुत्त १३, पृष्ठ १२ सम्पादक - राहुल सांकृत्यायन, आनन्द कोत्स्यायन, २. सुत्तनिपातो सुत्त ३५, श्लोक ३६, प्रष्ठ६८ सम्पा.जगदीश कश्यप
३.
सुत्त ३७, श्लोक २७, प्रष्ठ ७५
४. इतिवृत्तकं सुत्त २७, प्रष्ठ २०, सम्पादक
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५. धम्मपदं प्रष्ठ १९. सुत्त १२,
प्रष्ठ३८, सुत्त १५,
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