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( ४९ ) रखने की ही शिक्षा दी गई है । लोभ, क्रोध, हत्या, झूठा, अभियोग, असत्य भाषण, हिंसा आदि को त्याज्य कहा गया है । ___स्पष्ट हैकि इस्लाम परम्परा में उन तत्वों की अवहेलना की गई जिनसे हिंसा भाव की उत्पत्ति होती है और उन्हीं तत्वों को अपनाया गया है जिनसे अहिंसा भाव की पुष्टि होती है । कुरान में खुदा को सभी जीवों का जन्मदाता कहा गया है तब फिर जो जन्म देता है वह अपनी ही आज्ञा से जीवों को क्यों मरवायेगा ? और फिर यदि जीवों की कुर्बानी उचित होती तो धर्म स्थानों और तीर्थ स्थानों पर उनकी कुर्बानी का निषेष क्यों होता।
कुरान में कहा गया है "कक्का और उसकी हद तक किसी को, किसी जीव को नहीं मारना चाहिये और अगर भूल से मरे तो उसके बदले में अपना पाला हुआ जानवर छोड़ना चाहिये अथवा दो समझदार मनुष्य जो उसकी कीमत ठहरावें उतनी कीमत का खाना गरीबों को खिलाया जाये " इस धम ग्रंथ में तो यहाँ तक लिखा हैं कि मक्का शरीफ की यात्रा को जबसे जाओ तबसे जब तक वापिस न लौटो तब तक रोजा रखो और जानवरों को मत मारो तथा धर्म के जो खास-खास दिन गिनाये गये हैं. इन दिनों माँस मत खाओ। विचारणीय है कि यदि जीवों का संहार करने में धर्म होता तो धर्म ग्रंथ कुर्बानी करने की मनाही क्यों करते ? - कुरान स्पष्ट कहता है 'खुदा तक न गोश्त पहुँचता है और न खून ! बल्कि उस तक तुम्हारी परहेजगारी पहुँचती है।"१ कुरान के सूर-ए-अनाम में लिखा है “जमीन में जो चलने-फिरने वाला (हैवान या आकाश में दो पैरों से उड़ने वाला पक्षी है उसकी भो तुम लोगों जैसी जमायतें हैं ।''२
आगे चलकर सूर-ए निशा में लिखा है "खुदा उन्हीं लोगों की तौबा कबूल फरमाता है, जो नादानों से बुरी हरकत कर बैठते हैं भिर जल्द तौबा १. कुरान शरीफ-सूर-ए-अल हज्ज आयत ३७ २. वही, सूर-ए-अनाम आयत ३८
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