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( ४७ ) मेरी घृणा अनुचित महत्वाकांक्षा के लिये होने वाले युद्ध तक ही सीमित है । न्याय रक्षार्थ युद्ध का आव्हान वीरता का परिचायक है । अमेरिका की अखंडता के रक्षार्थ लड़ा जाने वाला युद्ध न्याय पर अधिष्ठित है। अतः मुझे उससे दुख नहीं है ।"१
निष्कर्ष रूप से शस्र उठाकर मारने के लिये उद्यत शत्रु के साथ शत्र द्वारा ही संघर्ष करना हिंसा नहीं प्रत्युत अहिंसा ही है । भारतीय दंड विधान में किसी व्यक्ति को प्राणघातक का अपराधी स्वीकार करते समय उसमें घातक मनोवृत्ति का सद्भाव प्रधानतया देखा जाता है । इसी कारण आत्मरक्षा के भाव से शस्रादि द्वारा अन्य का प्राणघात करने पर भी व्यक्ति दंडित नहीं होता।
१. युगधारा, मासिक मार्च ४८, पृ० ५२६
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