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( ४५ ) दिया जाये तो वह हिंसा की कोटि में नहीं आता क्योंकि आत्म रक्षा प्रत्येक व्यक्ति का जन्म सिद्ध अधिकार है। ___ मनुस्मृति में कहा गया है 'जब द्विजों के धर्म का मार्ग रूके अथवा समय के प्रभाव से आश्रम वालों का वर्ण विप्लव होने लगे उस समय अपनी रक्षा के लिये तथा दक्षिणा के समय, युद्ध में स्त्रियों तथा ब्राह्मणों की रक्षा के लिये द्विजाति भी शस्र ग्रहण करे क्योंकि धर्म युद्ध में शत्रुओं को मारता हुआ दोष का भागी नहीं होता।"
"गुरू, बालक, वृद्ध अथवा बहुश्रु त ब्राह्मण भी यदि मारने के लिये आये और अपनी रक्षा का कोई उपाय न दिखे तो बिना विचारे उसका वध करे।"
प्रकाश व गुप्त रीति से आततायी को मारने से मारने वाले को कुछ पाप नहीं होता क्योंकि क्रोध ही क्रोध का नाश करता है अर्थात् क्रोध अपराधी है और क्रोध ही मारने वाला है।"१ - रामायण का वह प्रसंग भी यहाँ उल्लेखनीय है जब ताड़का जंगल के ऋषियों को कष्ट देती है और तरह-तरह की हिंसा करती है तब अहिंसावादी ऋषि विश्वामित्र रामचन्द्रजी को ताड़का को दंड देने का उपदेश देते हैं।
महाभारत भी कहता है कि जो जैसे करे उससे वैसा ही करो। जो तुम्हारी हिंसा करता है तुम भी उसकी हिंसा करो। इससे मैं अहिंसा धर्म के पालन में कोई दोष नहीं देखता क्योंकि शठ के साथ शठता ही करनी चाहिये । १. शस्त्रं द्विजातिमिर्ग्राह्य धर्मों यत्रोपरूध्यते । द्विजातिनां च वर्णानां विप्लवे कालकारिते ॥ ८/३४८ आत्मनश्च परित्राणे दक्षिणानां च संगरे । स्त्री विप्राभ्युपपत्तौ न घ्नन्धर्मेण न दुष्यति ।। ८/३४९ गुरू वा बालवृद्धौ वा ब्राह्मणं वां बहुश्रु तम् । आततायिनमायान्तं हन्यादेवाविचारियन् ॥ ८/३५० नाततायिवधे दोषो हन्तुर्भवति कश्चन । प्रकाशं वाप्रकाशं वा मन्युस्तं मन्युमृच्छति ॥ ८/३५१
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