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अहिंसा और सिख धर्म
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'सिख' शब्द मूलत संस्कृत के 'शिष्य' शब्द से प्राकृत में परिवर्तन पाकर आया है।
सतयुग में लोग तप करते थे, त्रेता में यज्ञ, द्वापर में दान किंतु कलियुग में इन कर्मों के करने से लोग संकोच करते थे और नीच कर्मों में संलग्न हो रहे थे । अज्ञानान्धकार के कारण शुभ कर्मों की निन्दा करते थे धर्म जिसके सहारे सृष्टि खड़ी है, कमजोर होकर पतन के गर्त में जा पहुंचा। जब धर्म रूपी बैल धरतो के नीचे खड़ा चोख-पुकार रहा था तब परमात्मा ने गुरू नानक देव को जगत में भेजा, जो सिख धर्म के प्रणेता हैं। इस परम्परा में उनके पश्चात गुरू अगद, गुरू अमरदास गुरू रामदास, गुरू अर्जुनदेव, गुरू हरगोविन्द, गुरू गोविन्दसिंह हुए । इन गुरूओं के उपदेशों का संकलन 'गुरू ग्रंथ साहिब में है। ___ गुरू ग्रंथ साहिब में संकलित उपदेशों में मूलत अहिंसा, प्रेम और विश्व बन्धुत्व को ही प्रधानता दी गई है । गुरूओं ने कर्मों को प्रधानता देते हुए हिंसा-युक्त कर्म-काँड का विरोध किया है क्योंकि वे यज्ञ के निमित्त हिंसा एवं बलि के विरूद्ध थे यथा-गुरू नानक कहते हैं
जो सिर काटे और का अपना रहे कटाय ।
धीरे-धीरे नानका बदला कहीं न जाय ।। एकदा गुरूनानक कुरूक्षेत्र पहुचे । उस समय सूर्य ग्रहण का मेला लगा हुआ था। गुरूजी ने पंडितों से चर्चा हेतु एक देगची में माँस पकाना शुरू किया। सूर्य ग्रहण के समय देगची में माँस पकता देख हिन्दू पंडितों को आश्चर्य होना स्वाभाविक था। नानू पंडित जो स्वयं को बड़ा विद्वान समझता था, गुरूजी से
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