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( ३७ ) शाकाहारी दो सौ साठ, क्योंकि शाकाहारी के शरीर में वे रोग के कीटाणु प्रवेश नहीं कर सकते जो पशु माँस के साथ मांसाहारी के शरीर में स्वाभाविक रूप से प्रवेश कर जाते हैं। ___ मांसाहारी जीवों के मुंह की लार में वयलिन नामक रासायनिक द्वव्य नहीं होता जो कि अनाज सत्व को पचा सके जबकि शाकाहारी प्राणियों की लार में अनाज और दूसरे खाद्य पदार्थों के तत्वों को पचाने के लिये प्रचुर वयलिन है।
मांसाहारी प्राणियों की जठराग्नि इतनी तेज होती है कि उनको मांस का पाचन हो जाता है, मनुष्यों की जठराग्नि वैसी नहीं होती।
सिंह, बाध, कुत्ते आदि मांसाहारी प्राणी जीभ से चाटकर तरल पदार्थ पीते हैं। क्या मनुष्य ही इसी प्रकार पीता है ? नहीं। मनुष्य ही क्यों पशुओं में भी गाय, भैंस, घोड़ा आदि शाकाहारी पशु होठों के माध्यम से सुबड़कर तरल पदार्थ पीते हैं। .....
माँसाहारी प्राणियों के दाँत स्वाभाविक ही टेढ़ वक्र के होते हैं जिससे माँस को सुगमता से फाड़ा जा सके शाकाहारी जीवों के दांत छोटे, खुडे मिले हुए और बराबर होती हैं उनके पंजे और दाँत जीवित प्राणियों को मारने लायक नहीं होते। - मांसाहारियों की आँखें भी निरामिषभोजियों से भेद रखती हैं । मांसाहारी प्राणियों को नेत्र ज्योति सूर्य का प्रकाश सहन नहीं कर सकती, लेकिन रात में भी दिन की भाँति देख सकती हैं । रात्रि में आँखें दीपक की भांति अंगारे जैसी चमकती है जबकि मनुष्य दिन में भली-भाँति देख सकता है । सूर्य का प्रकाश उसमें बाधक न होकर सहायक है और फिर मनुष्य की आँखें रात में चमकती भी नहीं तथा न ही वे प्रकाश के बिना देख सकती हैं।
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