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( ३१ ) ब्राह्मण मांस को छोड़ता है, उसकी सर्न इच्छाएँ पूर्ण होती हैं, अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है, और वह घर में रहता हुआ भी मुनि कहलाता है ।"१
कहने का तात्पर्य है कि कोई धर्म ग्रन्थ ऐसा नहीं जो अहिंसा की प्रशंसा न करे । विष्णु धर्मोत्तर नामक महापुराण, जो नैष्णव महापुराण का ही उत्तर भाग है उसमें भी मांस-मदिरा भक्षण निषेध और अहिंसा धर्म का ही प्रतिपादन किया गया है। शंकर जी परशुराम से कहते हैं- "हे राम ! अहिंसा, सत्य वचन, प्राणियों पर दया और सहानुभूति ये गुण जिस मनुष्य में होते हैं उस पर भगवान केशव (श्री विष्णु) सदा प्रसन्न रहते हैं। जो मनुष्य अपने माता-पिता गुरूओं के साथ सद्व्यवहार करता है और शराब तथा माँस का त्यागी होता है उस पर केशव सदा खुश रहते हैं । हे भार्गव ! जो मानव सूअर आदि स्थलचर और मत्स्य आदि जलचर प्राणियों का माँस नहीं खाता तथा मद्यपान नहीं करता उस पर केशव सदा संतुष्ट रहते
नि:संदेह हर धर्म ग्रन्थ में सभी ऋषि-मुनियों द्वारा अहिंसा धर्म की महानता का बखान किया गया है । हाँ यह बात अलग है कि जो ऋषि अपनी माँस-लोलुपी प्रवृत्ति पर नियन्त्रण न पा सके उन्होंने मन्त्रों की उन्हीं १ सर्वान् कामानवाप्नोति, हयमेधफलं तथा ।
गृहेऽपि निवसन् विप्रो, मुनिर्मास-विवर्जनात् ।।
याज्ञवल्क्य संहिताः प्रकरण ७, श्लोक १८१ २. अहिंसा सत्य वचनं दया भूतेष्वनुग्रहः ।
यस्यैतानि सदा राम ! तस्य तुष्यति केशवः ॥१॥ माता-पितृ गुरूणांचय: सम्यगिह वर्तते। वर्जको मधु-मांसस्य तस्य तुष्यति केशवः ॥२॥ वाराह-मत्स्य-माँसानि यो नात्ति मृगुनन्दन । विरतो मद्यपानाच्च, तस्य तुष्यति केशवः ॥ ३॥ श्री विष्णु धर्मोत्तर खंड १. अध्याय ९५८
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