Book Title: Vamdhwajvinirmita Sankettika taya Sahit Udayanacharya Nibaddha Nyayakusumanjali
Author(s): Nagin J Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 16
________________ वामध्वजविनिर्मिता सङ्केतटीका तया सहितः महामहोपाध्यायश्रीमदुदयनाचार्यप्रणीतः न्यायकुसुमाञ्जलिः प्रथमः स्तबकः [1] ॐ नमः शिवाय / यद् योगिमुखै(ख्यै)रपि नैव गम्यं ___यत् कारणं सर्गलयस्थितीनाम् / यदर्धदेहस्थितसुन्दरीक मीशस्य तद्रूपमहं नमामि // 1 // भुवनत्रितये यस्य कीर्त्या पल्लवितं विभोः / नमामि विरूपाक्षं गुरुं वाक्कायमानसैः // 2 / / विषमग्रन्थदुर्गस्थि(दुर्ग्रन्थि)विपाटनपुरस्सरम् / वामध्वजेन सङ्केतः क्रियते कुसुमाञ्जलौ // 3 / / भ्रातस्तर्क ! तवातिकर्कशतया मातर् ! मृदुत्वात् तव ब्राह्मि ! क्वापि न दृश्यतेऽत्र युवयोर्योगो जने यद्यपि / कारुण्येन तथापि मामकमुखाख्याब्जे मुहुः स्थीतयाम् येनाहं कुसुमाञ्जलेविवरणं कुर्यां महार्थद्युतिम् // 4 // यद्यप्यस्य विवेचितानि बहुशस्तत्त्वानि तज्ज्ञैर्जनैः / मद्ग्रन्थे ननु पिष्टपेषणमति: कार्या तथाप्यत्र न / रत्नानि त्रिदशैर्यदप्यवहितैर्निर्मथ्य पाथोनिधे राकृष्टानि तथापि जातु किमसौ रत्नैर्भवत्युज्झितः / / 5 / / 1. सत्पक्षप्रसरः सतां परिमलप्रोद्बोधबद्धोत्सवो विम्लानो न विमर्दनेऽमृतरसप्रस्यन्दमाध्वीकभूः / ईशस्यैष निवेशितः पदयुगे भृङ्गायमाणं भ्रम च्चेतो मे रमयत्वविनमनघो न्यायप्रसूनाञ्जलिः // 1 // 1. Square brackets are used to indicate filling of lacunae, and round brackets to enclose emendments by the editor.

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