Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 3
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्त्वार्यश्लोकवार्तिके
जाननेवाले भी यदि प्रमाण माने जायेंगे तब तो सबसे पहले स्मरण और व्याप्तिज्ञान आदि प्रमाणके स्थानोंको घेर लेंगे। कोई निरोधक नहीं है।
. श्रुतवाचात्र किं कृतमित्याह ।
. श्रुत शब्द करके यहां सूत्रमें क्या किया गया है, ऐसी जाननेकी इच्छा होनेपर आचार्य महाराज वार्तिक द्वारा समाधान कहते हैं।
श्रुतस्याज्ञानतामिच्छंस्तद्वाचैव निराकृतः।
स्वार्थेक्षमतिवत्तस्य संविदित्वन निर्णयात् ॥ २१ ॥ ... जो चार्वाक, बौद्ध, नास्तिक, आदि वादी श्रुतज्ञानको प्रमाणपना नहीं चाहते हैं, उन वादियोंका उस सूत्रोक्त श्रुत शब्द करके ही खण्डन करदिया गया है । इन्द्रियोंसे उत्पन्न हुआ प्रत्यक्षज्ञान जैसे अपने और अपने विषयके जाननेमें सम्बादी होनेके कारण प्रमाणरूप मानागया है, उसके समान स्व और अर्थके जाननेमें सम्बादीपन होनेके कारण श्रुतज्ञानका भी प्रमाणपनेसे निर्णय है । नास्तिकवादी भी चिठ्ठी, सम्बादपत्र, पुस्तकें, आदिको बांचकर तथा माता, पिता, गुरु, मित्र, पुत्र, स्त्री आदिके वाक्योंको सुनकर अर्थान्तरका ज्ञान करता है, यही तो श्रुतज्ञान है । बौद्धोंके भी अनेक ग्रन्थ हैं। उनको पढकर जो होगा वही तो श्रुतज्ञान है, चार्वाकोंके भी शास्त्र हैं । शद्धसे जन्य ज्ञानको माने विना गूंगे और कहनेवाले महान् वक्तामें कोई विशेषता नहीं । मूर्खको पण्डित बतानेमें या बालकको उत्तरोत्तर ज्ञानशाली बतानेमें शब्द ही प्रधान कारण हैं । पशुपक्षियों तकमें शब्दसे उत्पन्न हुआ वाच्य अर्थका ज्ञान देखा जाता है। हां, कहीं कहीं विसम्वाद हो जानेसे सभी श्रुतज्ञानोंको यदि अप्रमाण कहा जायगा तब तो सीपमें चांदीका ज्ञान होना एक चंद्रमाको दो जान लेना आदि प्रत्यक्षोंके अप्रमाण हो जानेसे सभी प्रत्यक्ष अप्रमाण हो जायंगे। हां, प्रत्यक्षाभासके समान श्रुतज्ञानाभास भी मान लिया जायगा।
न हि श्रुतज्ञानमप्रमाणं कचिद्विसंवादादिति ब्रुवाणः स्वस्थः प्रत्यक्षादेरप्यप्रमाणत्वापत्तेः। संवादकत्वाचस्य प्रमाणत्वे तत एव श्रुतं प्रमाणमस्तु, न हि ततोर्थे परिच्छिद्य प्रवर्तमानोर्थक्रियायां विसंवाद्यते प्रत्यक्षानुमानत इव श्रुतस्याप्रमाणतामिच्छन्नेव श्रुतवचनेन निराकृतो द्रष्टव्यः। .
श्रुतज्ञान अप्रमाण है, क्योंकि कहीं कहीं विसम्वाद हो जाता है । अर्थात्-गप्पाष्टके, उपन्यास पुस्तकें, कवियोंकी उत्प्रेक्षायें, आदि अनेक अंशोमें झूठी पडती हैं। छोटे बालकोंसे सताया गया वृद्ध मनुष्ये झूठ बोल देता है कि नदीके किनारे लड्डुओंके ढेर लग रहे हैं । हे लडके, तुम लोग वहां