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सामायिक प्रत अब यह देखते हैं कि १ सामायिक किसे कहते हैं, २ सामायिक किस उद्देश्य से की जाती है, ३ सामायिक करने से क्या लाभ होता है और ४ सामायिक किस तरह करनी चाहिए। जिससे उस सामायिक का दूसरों पर प्रभाव पड़े और अपने लिये ध्येय के समीप पहुँचने में सिद्धि प्राप्त हो। इन चार विषयों में से प्रथम सामायिक किसे कहते हैं, आदि बताने के लिए टीकाकार कहते हैं
समो रागद्वेष वियुक्तो यः सर्व भूतान्यात्मवत् पश्यति तस्य आयो लाभ प्राप्तरिती पर्यायाः। अन्य च-समस्य आयः समायः समोहि प्रतिक्षण म पूर्वान दर्शन चरण पर्यायवाटवो भ्रमण संकल्प विच्छेदकैनिरूपम सुख हेतु भिरयः कृत चिन्तामणि कामधेनु कल्पद्रुमोपमैयुज्यते स एवं समायः प्रयोजनमस्य क्रियानुष्ठानस्येति मूल गुणानामाधार भूतं सर्व सावध विरति रूपं चारित्रम् सामायिकं समाय एव सामायिकं ।
अर्थात् रागद्वेष रहित होकर सब जीवों को आत्म तुल्य मानने को 'सम' कहते हैं । इस समभाव की आय (समभाव के लाभ) को 'समाय' कहते हैं। इस अर्थ को स्पष्ट करने के लिए विशेष रूप से यह कहते हैं कि प्रतिक्षण अपूर्व ज्ञान, दर्शन, चारित्र को पर्याय से जो भव-रूपी अटवी में भ्रमण करने के संकल्प को विच्छेद करके उस निरूपम परम। सुख का कारण है, जिस परम सुख के लिए कोई उपमा ही नहीं है, तथा संसार में सुख के उत्कृष्ट साधन माने जाने वाले चिन्तामणि कामधेनु और कल्प वृक्ष को भी जो परम सुख तुच्छ बना देता है, उसको 'सम' कहते हैं।
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