________________
पौषधोपवास प्रत
साधु जीवन के अनुरूप हो जाता है, इसलिए पौषध व्रत-धारी व्यक्ति को वैसे ही कार्य करना उचित है, जिनके करने से पौषध व्रत स्वीकार करने का उद्देश्य पूर्ण हो। पौषध व्रत-धारी श्रावक को इंद्रियों तथा मन पर संयम रख कर, समस्त सांसारिक संकल्प, विकल्प त्याग देने चाहिएँ तथा आत्म-चिंतन, तत्त्व-मनन एवं परमात्म-भजन में ही तल्लीन रहना चाहिए। उसको सारा दिन
और सारी रात इन्हीं कार्यों में बिताना चाहिये। पौषध व्रत स्वीकार करने के पश्चात् गृह-संसार, आजीविकोपार्जन, खान-पान और शरीर-सुश्रुषा सम्बन्धी चिन्ता तो छूट हो जाती है। इसलिए पौषध व्रत का अधिक से अधिक समय धर्माराधन में ही लगाना चाहिए। रात में भी जितना हो सके उतना धर्म-जागरण करना चाहिए ।
पूर्व कालीन श्रावकों का जो वर्णन सूत्रों में है, उससे पाया जाता है कि अमुक श्रावक रात्रि का प्रथम भाग व्यतीत हो जाने पर जब धर्म-जागरण कर रहा था, तब उसके पास देव पाया, जिसने श्रावक से अमुक-अमुक बातें कहीं, या श्रावक को अमुक उपसर्ग दिया। अथवा उस धर्म-जागरण करते हुए श्रावक ने ऐसो२ भावना की। इस वर्णन से स्पष्ट है कि देवता लोग धर्मजागरण करने वाले श्रावक के पास ही पाते हैं। किसी सोये हुए श्रावक को देव ने जगाया, ऐसा वर्णन कहीं भी नहीं पाया Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com