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अतिथि-संविभाग व्रत
शावक के बारह व्रतों में से बारहवाँ और चार शिक्षा ब्रतों
" में से चौथा व्रत अतिथि-संविभाग है। श्रावक का जीवन कैसा धार्मिक हुआ है, श्रावक होने के पश्चात् जीवन में क्या विशेषता बाई है और पाँच अणुव्रत तथा तीन गुणव्रत के पालन का प्रभाव उसके जीवन पर कैसा पड़ा है आदि बातों को जानने का साधन श्रावक के चार शिक्षा व्रत हैं। चार शिक्षा व्रत में से प्रथम के तीन शिक्षा व्रत का लाभ तो श्रावक को ही मिलता है, लेकिन चौथे अतिथि-संविभाग व्रत का लाभ दूसरे को भी मिलता है। इस व्रत का पालन करने से बाह्य जगत को यह ज्ञात होता है कि जैन दर्शन कैसा विशाल है और जैन धर्म पालन करने वाले में विश्वबन्धुत्व की भावना कैसी प्रौढ रहती है।
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