________________
श्रावक के चार शिक्षा व्रत
१४६ ३ कालातिक्रमः-जिस वस्तु के देने का जो समय है, वह समय टाल देना, कालातिक्रम नाम का तीसरा अतिचार है। उदाहरण के लिए किसी देश में अतिथि को हार देने का समय दिन का दूसरा प्रहर है। इस समय को टाल देना, अतिथि को आहार देने के लिए उद्यत न होना, कालातिक्रम नाम का तीसरा अतिचार है।
४ परोपद्देश्य-वस्तु देनी न पड़े, इस उद्देश्य से अपनी वस्तु को दूसरे की बताना, अथवा दिये गये दान के विषय में यह संकल्प करना कि इस दान का फल मेरे पिता, माता, भाई आदि को मिले, परोपहश्य नाम का चौथा अतिचार है।
५ मात्सर्य-दूसरे को दान देते देखकर उसकी प्रतिस्पर्धा करने की भावना रखकर दान देना, यानि यह बताने के लिए कि मैं उससे कम नहीं हूँ किन्तु बढ़कर हूँ, दान देना, मात्सर्य नाम का पाँचवाँ अतिचार है।
ये अतिचार, बारहवें व्रत को दूषित करने वाले हैं। इस लिए इन अतिचारों से बचते रहना चाहिए। ये अतिचार जब तक अतिचार के रूप में हैं, तब तक तो व्रत को दूषित ही करते हैं, लेकिन अनाचार के रूप में होते ही व्रत नष्ट कर देते हैं। इनके सिवाय कुछ अन्य कार्य भी ऐसे हैं, जिनसे व्रत भंग हो जाता है। वे कार्य इस प्रकार है:Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com