Book Title: Shravak Ke Char Shiksha Vrat
Author(s): Balchand Shreeshrimal
Publisher: Sadhumargi Jain

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Page 154
________________ श्रावक के चार शिक्षा व्रत १४४ नहीं कल्पता है । इस वर्णन से अन्य लोगों को दान देना श्रावक के लिए निषिद्ध होना स्पष्ट ही है ।' इस प्रकार के कथन का समाधान यह है कि श्रावक के लिए धर्म- बुद्धि या गुरु- बुद्धि से यह सब करना निषिद्ध है। क्योंकि धर्म- बुद्धि या गुरु- बुद्धि से अन्यतीर्थी के साथ ऐसा व्यवहार करने पर मिध्यात्व का पोषण होता है। श्रावक की देखा-देखी अन्य लोग भी अन्य तीर्थियों के साथ ऐसा व्यवहार कर सकते हैं जिससे मिध्यात्व की वृद्धि होगी । इसलिए धर्म - बुद्धि या गुरुबुद्धि से तो श्रावक के लिए, पंच महाव्रतधारी महात्माओं के सिवाय दूसरे लोगों को दान देना निषिद्ध ही है, लेकिन व्यवहारबुद्धि, उपकार- बुद्धि या अनुकम्पा को भावना से दान देने का निषेध कहीं भी नहीं है, किन्तु विधान है। उदाहरण के लिए उपासक दशाङ्ग सूत्र में हो सकडाल पुत्र श्रावक के वर्णन में कहा गया है कि गोशालक मंखली पुत्र से प्रश्नोत्तर करने के पश्चात् सकडाल पुत्र ने गोशालक को पाट श्रादि चीजें दीं। इस प्रकार धर्म-बुद्धि या गुरु- बुद्धि से तो दूसरे को दान देने का निषेध है, लेकिन व्यवहारादि-बुद्धि से दूसरे को दान देने का श्रावक के लिए निषेध नहीं है। इसलिए श्रावक का कर्त्तव्य है कि वह सभी अतिथियों को दान देने के लिए अपने घर का द्वार खुला रखे । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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