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उपसंहार
इस प्रकार इन शिक्षा व्रतों का स्वरूप संक्षेप में बताया गया है, विस्तार से वर्णन किया जाय तो एक २ व्रत के ऊपर एक २ प्रन्थ बन सकता है किन्तु प्रन्थ बढ़ने के भय से यहां संक्षेप में ही स्वरूप प्रतिपादन किया गया है। इन शिक्षा व्रतों के स्वरूप को हृदयंगम करके जो भव्यात्मा व्रतों का सम्यक् प्रकार से माराधन करेगा और अतिचारों एवं दोषों से बचता रहेगा तो वह श्रावक-पद का बाराधक होकर स्वल्प-काल में ही वांच्छितार्थ को प्राप्त कर सिद्ध, बुद्ध और मुक्त दशा को प्राप्त होगा। इत्यलम् ।
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