Book Title: Shravak Ke Char Shiksha Vrat
Author(s): Balchand Shreeshrimal
Publisher: Sadhumargi Jain

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Page 152
________________ भावक के चार शिक्षा व्रत १४२ एक राजा के हाथ में जहरी फोड़ा हो गया था। वैद्यों ने कहा कि यह फोड़ा प्राण-घातक है लेकिन यदि यह राजहंस की चोंच से फट जावे, तो उस दशा में राजा के प्राण बच सकते हैं। वैद्यों द्वारा बताये गये उपाय के विषय में यह प्रश्न उपस्थित हुआ कि कैसे तो राजहंस आवे और कैसे वह इस छाले को फोडे! इस प्रश्न को हल करने के लिए राजा ने एक मकान बनवाया जिसकी छत में ऐसा छेद रखा कि राजा का हाथ तो नीचे रहे, लेकिन वह छाला छत के ऊपर निकला रहे। यह करके उसने छत पर पक्षियों के चुगने के लिए अन्न डलवाना प्रारम्भ किया। साथ ही, छाले के आस-पास हंसों के चुगने के लिए मोती भी डलवाने लगा। उस छत पर अन्न चुगने के लिए पक्षी आने लगे तथा पक्षियों को चुगते देखकर हंस भी आने लगे। होते-होते उन हंसों के साथ एक दिन राजहंस भी आ गया। राजहंस मोती चुगने लगा। मोती चुगते हुए राजहंस ने राजा के हाथ के छाले को मोतो समझ कर उस पर भी चोंच मार दी, जिससे छाला फूट गया और राजा स्वस्थ हो गया। यद्यपि उस राजा का उद्देश्य राजहंस को बुलाना था, लेकिन राजहंस तभी आया, जब दूसरे पक्षी आते थे। यदि राजा ने दूसरे पक्षियों के लिए चुगने का प्रबन्ध न किया होता, तो राजहंस Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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