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भावक के चार शिक्षा व्रत
१३० लेकर वापस लौटा भी देते हैं। इन पदार्थों से मुनि महात्माओं को प्रतिलाभित करना श्रावक का कर्तव्य है और इस कर्तव्य के पालन करने की प्रतिज्ञा करना, इसी का नाम अतिथि संविभाग व्रत है।
दान के उत्कृष्ट पात्र मुनि महात्माओं को उनके कल्पानुसार प्रामुक एवं एषणिक पदार्थ का दान वही श्रावक दे सकता है, जो स्वयं भी ऐसे पदार्थ काम में लाता है। क्योंकि मुनि महात्मा वही पदार्थ दान में ले सकते हैं, जो पदार्थ दान देने वाले ने अपने लिए या अपने कुटुम्बियों के लिए बनाया हो। इसके विरुद्ध जो पदार्थ मुनि के लिए बनाया गया है अथवा खरीद कर लाया गया है, वह पदार्थ मुनि महात्मा नहीं लेते, किन्तु उसे दुषित और अप्राहय मानते हैं। इसलिए जो श्रावक, अतिथि-संविभाग व्रत का पालन करने के लिए मुनि को दान देने की इच्छा रखता है, उसे अपने खान-पान, रहन-सहन आदि के काम में वैसी ही चीजें लेनी होंगी, जिनमें से मुनि महात्माजों को भी प्रतिलाभित किया जा सके। जो श्रावक ऐसा नहीं करता है, वह मुनि महात्माओं को दान देने का लाभ भी नहीं ले सकता। उदाहरण के लिए, कोई श्रावक अपने खाने पीने में सचित तथा अप्रामुक पदार्थ ही काम में लेता है, रंगीन बहुत महीन अथवा चमकीले वस्त्रों का उपयोग करता है, अथवा कुर्सी, पलंग, टेबल वादि ऐसी ही चीजें घर में Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com