________________
श्रावक के चार शिक्षा व्रत
११४ धर्म-ध्यान के आज्ञा रुचि, नैसर्ग रुचि, सूत्र रुचि और अवगाढ़ रुचि ये चार लक्षण कहे गये हैं। इन लक्षणों से धर्म ध्यान की पहचान होती है। इन लक्षणों का स्वरूप इस प्रकार है:
१ आज्ञा रुचि-भगवान् तीर्थकर ने तप, संयम की माराधना के लिए जिन कार्यों का विधान किया है, उन कार्यों के विधायक वचनों पर श्रद्धा होना, आज्ञा रुचि है।
२ नैसर्ग रुचि-बिना किसी के उपदेश के ही, क्षयोपशम भाव की विशुद्धि से जाति-स्मृति आदि ज्ञान होकर तत्वों पर श्रद्धा होना, नैसर्ग रुचि है।
३ सूत्र रुचि- आप्त प्रतिपादित सूत्रों का अभ्यास करते रहने से तत्त्वों पर भद्धा होना, सूत्र रुचि है।
४ अवगाढ़ रुचि-मुनि, महात्माओं की सेवा में रह कर उनका उपदेश सुनने से तत्त्वों पर श्रद्धा होना, अवगाढ रुचि है।
धर्म-ध्यान के चार अवलम्बन हैं। अवलम्बन यानि आधार, जिसके सहारे धर्म-ध्यान किया जा सके। ऐसे अवलम्बनों के नाम-वाचना, पूच्छना, पर्यटना और अनुप्रेक्षा हैं। थोड़े में इन चारों की व्याख्या भी की जाती है।
(१) सत्साहित्य का वांचन, वाचना है। सत्साहित्य वह है, जिसके अध्ययन से मात्मा में तप, संयम, अहिंसा जादि की भावना उत्पन्न हो या वृद्धि पावे।।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com