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पौषधोपवास व्रत के प्रतिचार
स ग्यारहवें पौषधोपवास का उद्देश्य प्रमादावस्था से इस आत्मा को निकाल कर अप्रमत्तावस्था में स्थित होना है । इसलिए इस व्रत में प्रमाद को किंचित् भी स्थान नहीं है । थोड़ा भी प्रमाद करने पर पौषधोपवास व्रत दूषित हो जाता है । पौषधोपवास व्रत किस-किस तरह के प्रमाद से दूषित होता है, यह बताने के लिए भगवान ने पौषधोपवास व्रत के पाँच अतिचार बताये हैं, जो इस प्रकार हैं:
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१ अप्रतिलेखित दुष्प्रति लेखित शैया संथारा - पौषध के समय काम में लिये जाने वाले पाट, पाटला, बिछौना, संथारा आदि का प्रतिलेखन न करना, अथवा विधि-पूर्वक प्रतिलेखन न
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