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पौषधोपवास व्रत के अतिचार करना, यानि मन लगा कर प्रतिलेखन की विधि से प्रतिलेखन न करना और इस प्रकार के शैया, संथारा को काम में लेना, अप्रतिलेखित दुष्प्रतिलेखित शैया संथारा नाम का अतिचार है।
प्रतिलेखन प्रातःकाल भी होना चाहिए और सायंकाल भी, रात के समय अन्धेरे में छोटे जीव नहीं दिख सकते। इसलिए सायंकाल को ही प्रतिलेखन कर लिया जाता है, जिसमें बिछौने आदि में कोई जीव न रह जाय और उसकी विराधना न हो जाय । रात्रि समाप्त होने के पश्चात् प्रातःकाल बिछौना आदि का प्रतिलेखन यह देखने के लिए किया जाता है कि रात के समय मेरे द्वारा किसी जीव की विराधना तो नहीं हुई है ! यदि हुई हो तो उसका प्रायश्चित किया जावे।
२ अप्रमार्जित दुष्पमार्जित या संथारा-पाट-पाटला, बिस्तर आदि परिमार्जन न करना, अथवा विधि रहित परिमार्जन करना, अप्रमार्जित दुष्प्रमार्जित शैया संथारा नाम का दूसरा अतिचार है।
प्रतिलेखन और परिमार्जन में अन्तर है, इसी से दोनों के विषय में अलग-अलग अतिचार कहे गये हैं। प्रतिलेखन दृष्टि द्वारा होता है। यानि दृष्टि से देख लिया जाता है कि कोई जीव तो नहीं है। लेकिन परिमार्जन, पूजनी या रजोहरण द्वारा होता है। दिन के प्रकाश में तो प्रतिलेखन किया जाता है, लेकिन प्रकाश न Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com