Book Title: Shravak Ke Char Shiksha Vrat
Author(s): Balchand Shreeshrimal
Publisher: Sadhumargi Jain

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Page 131
________________ १२१ पौषधोपवास व्रत बार तो निराश होकर लौट गई, लेकिन दूसरी बार संथारा में फिर महाशतकजी के पास जाकर महाशतकजी को विचलित करने का प्रयत्न करने लगी। उस समय महाशतकजी को अवधिज्ञान हो गया था। महाशतकजी ने अवधिज्ञान द्वारा रेवती का भविष्य जानकर आवेश में आ रेवती से कहा कि तू निरर्थक कष्ट क्यों उठाती है। शीघ्र ही तुझे अर्ष रोग होगा, जिससे तू आज के सातवें दिन मर कर रत्नप्रभा नाम की प्रथम पृथ्वी में चौरासी हजार वर्ष की आयु वाले नारकीय जीव के रूप में उत्पन्न होगी। महाशतकजी का यह कथन सुनकर, रेवती भयभीत होकर वहाँ से चली गई और भारत-ौद्र ध्यान करती हुई मर कर नर्क में गई। यद्यपि महाशतकजो ने जो कुछ कहा था वह सत्य ही था, परन्तु था अप्रिय । इसलिए भगवान ने महाशतकजी का व्रत दूषित हुमा मानकर गौतमस्वामी द्वारा महाशतकजी को आलोचना, प्रायश्चित्त करने की सूचना दी। महाशतकजी ने भगवान् की सूचना शिरोधार्य की और वैसा ही किया। मतलब यह है कि पौधष व्रत-धारी को अप्रिय एवं कठोर सत्य पात भी न कहनी चाहिए। इसी तरह उन सब मानसिक, वाचिक तथा कायिक कार्यों से बचे रहना चाहिए, जिनसे पोषध व्रत दूषित होता है और वे ही कार्य करने चाहिएँ जिनके करने से धर्म पुष्ट होता है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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