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पौषधोपवास व्रत
कि अज्ञान एवं प्रमाद के वश होकर इन कर्मों का संचय मैंने ही किया है। अब श्री देव गुरु की कृपा से मेरे आत्मा में जिनेश्वर भगवान् के वचनों का प्रकाश हुआ है, इसलिए आत्मा को ऐसे कर्म से बचाऊँ जिससे मुझे फिर इस दुःख रूपी अपाय का अनुभव न करना पड़े। इस तरह का विचार करना, श्रपाय- विश्चय नाम का धर्म - ध्यान है ।
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३ विपाक -विचय — किये हुए कर्म का दो तरह से अनुभव में आता है। शुभ कर्म को इष्ट पदार्थों का संयोग होता है तथा सुख मिलता है और अशुभ कर्म के उदय से अनिष्ट पदार्थों का संयोग तथा दुःख मिलता है। इस प्रकार कर्म के विपाक के सम्बन्ध में विचार करते हुए यह मानना कि जो शुभाशुभ विपाक मिलता है वह मेरे किये हुए शुभाशुभ कर्म का ही परिणाम है। ऐसा विचारना, मानना, विपाक-विचय नाम का तीसरा धर्म- ध्यान है ।
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४ संस्थान- विचय — स्थिति, लय और उत्पात रूप आदि अन्त रहित लोक का चिन्तवन करना, संस्थान-विचय है । ऐसा लोक तीन भागों में विभक्त है, उर्ध्व लोक, श्रधः लोक और तिर्यक लोक । प्रत्येक लोक में कौन-कौन जीव रहते हैं, उनकी गति, स्थिति क्या है और उन्हें कैसे सुख, दुःख का अनुभव करना होता है, इसका मित्रभिन्न विचार करना, संस्थान-विचय नाम का चौथा धर्म ध्यान है । १५
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फल ( विपाक )
उदय से आत्मा
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