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पौषधोपवास व्रत
पिछली रात को धर्म- जागरण न करना, १० बिना पूँजे शरीर खुजलाना, ११ बिना पूँजे परठना, १२ निन्दा या विकथा करना, १३ भय खाना या भय देना १४ सांसारिक बातचीत या कथा
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वार्ता करना कहना, १५ स्त्री के अंगोपांग निहारना, १६ खुले मुँह प्रयत्ना से बोलना, १७ कलह करना और १८ किसी सांसारिक नाते से बुलाना । जैसे- पौषध व्रत धारी को काकाजी, मामाजी, सुसराजी, सालाजी आदि नाते से न बोलना चाहिये ।
ये दोष पौषध व्रत को दूषित करते हैं, इसलिए इन दोषों से बचे रहना चाहिए। साथ ही दृढ़, सहनशील एवं शान्त रहना चाहिए। कई बार पौषध व्रतधारी को अनेक प्रकार के परिषह उपसर्ग भी होते हैं । यदि उस समय सहनशीलता न रहो तो पौषध व्रत भंग हो जाता है । उपासक दशाङ्ग सूत्र में चुलनी पिता आदि श्रावकों का वर्णन है । जिनमें से कई श्रावकों को पौषध व्रत से विचलित करने के लिए देव गया । देव ने उनके सामने अनेक भयंकर दृश्य उपस्थित किये । उनके पुत्रों को छाकर उन्हीं के सामने मार डाला और मृत शरीर के टुकड़े तेल के कड़ाह में डाल कर पुत्रों का रुधिर मांस व्रत में बैठे हुए पिता (श्रावक) के शरीर पर छींटा । जब यह सब करने पर भी वे श्रावक अविचल रहे, तब किसी की माता को मारने का कहा, किसी की पत्नि को मारने का भय दिखाया, किसी को रोग का भय
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