Book Title: Shravak Ke Char Shiksha Vrat
Author(s): Balchand Shreeshrimal
Publisher: Sadhumargi Jain

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Page 126
________________ श्रावक के चार शिक्षा व्रत ११६ ४ संसारानुप्रेक्षा – संसार के जन्म, मरण के क्रम एवं आवागमन सम्बंधी विचार करके किसी से स्नेहन रखने की भावना करना, संसारानुप्रेक्षा है । पौषध व्रत धारी श्रावक को अपना समय इस तरह धर्म-ध्यान में ही बिताना चाहिए। साथ ही उन दोषों से बचे रहना चाहिए, जिनसे पौषध व्रत दूषित होता है । ऐसे दोषों से बचने के लिए उन दोषों की जानकारी होना आवश्यक है । उनमें से कुछ तो ऐसे हैं, जो पौषघ व्रत स्वीकार करने से पहिले करने पर भी व्रत दूषित होता है ओर कुछ ऐसे हैं जो पौषध व्रत स्वीकार करने पर किये जाने से व्रत दूषित होता है । पौषध के निमित्त से १ सरस आहार करना, २ मैथुन करना, ३ केश, नख कटाना, ४ वस्त्र धुलाना, ५ शरीर मण्डन करना, और ६ सरलता से न खुल सकने वाले आभूषण पहनना, ये छः दोष पौषध करने से पूर्व के हैं। इनके सिवाय बारह दोष वे हैं, जो पौषध व्रत स्वीकार करने के पश्चात् आचरण में आने पर व्रत दूषित होता है। वे बारह दोष इस प्रकार हैं: - जो व्रतधारी नहीं है, उसकी ७ व्यावच (सेवा) करना अथवा उससे व्यावच कराना या ऐसे व्यक्ति को आदर देना, ८ शरीर में पसीना होने पर शरीर को मल कर मैल उतारना, ९ दिन में नींद लेना, रात में एक प्रहर रात जाने से पहले ही सो जाना अथवा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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