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भावक के चार शिक्षा व्रत
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जाने वाले कृषि, वाणिज्य आदि व्यापार का त्याग करके धर्म का पोषण करना, अव्यापार पौषध है ।
व्यापार पौषध के भी देश से और सर्व से दो भेद हैं। आजीविका के लिए किये जाने वाले कार्यों में से कुछ का त्याग करना देश से व्यापार पौषध है और सब कार्यों का पूर्ण रूपेण अहोरात्र के त्याग करना, सर्व से व्यापार पौषध है ।
इन चारों प्रकार के पौषध को देश या सर्व से करना ही पौषधोपवास व्रत है। जो पौषधोपवास देश से किया जाता है वह स- सामायिक किया जावे तब भी हो सकता है और यों भी हो सकता है। जैसे - केवल उपवास, आयंबिल आदि करे अथवा शरीर सुश्रुषा के अमुक प्रकार के त्याग करे, ब्रह्मचर्य का कुछ निमय ले या किसी प्रकार के व्यापार के त्याग करे परन्तु पौषध की वृत्ति धारण न करे, इस प्रकार के पौषध ( त्याग ) दशवें व्रत के अंतर्गत माने गये हैं । किन्तु ग्यारहवां व्रत तो सम्पूर्ण चारों प्रकार के सर्वथा त्याग कर सामायिक पूर्वक + पूर्ण दिवस, रात्रि को करे, उसे ही
* सामायिक पौषध का मतलब वृत्ति सहित चारों प्रकार के पौषध करना है । सामायिक में सावद्य योग का प्रत्याख्यान होता है । इसी प्रकार स- सामायिक पौषध में भी चारों पौषध स्वीकार करने के साथ सर्व सावद्य योग का त्याग होता है । इसीलिए कहा गया है कि ग्यारहवाँ व्रत से सामायिक ही हो सकता है । सामायिक रहित पौषध की गणना दशवें व्रत में होती है ।
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