________________
१०७
पौषधोपवास व्रत (प्रति पूर्ण पौषध ) इस व्रत को कोटि में सुमार किया जाता है जिसके त्याग इस प्रकार पाठ बोल कर किये जाते हैं।
"ग्यारहवां पडिपुण्ण पोसहवयं, सव्वं, असणं, पाणं, खाइमं साइमं पचखामि, अबम्भ, सेवणं, पचखामि; उमुक्कमणि, हिरण, सुवण्ण, माला, वण, विलेवणं पचखामि, सत्थ, मुसलाई, सव्व, सावज योगं पचखामि, जाव, अहोरत्तं, पज्जुवासामि दुविहं, तिविहेणं, न करेमि न कारवेमि, मणसा, वयसा, कायसा तस्स भन्ते परिकमामि, निन्दामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि "
इस पाठ द्वारा चारों प्रकार का आहार सब प्रकार की शरीर, सुश्रुषा, अब्रह्मचर्य और समस्त सावध व्यापार का पूर्ण अहोरात्रि के लिये त्याग किया जाता है, यहां वक कि प्रातःकाल सूर्योदय हो जाने के बाद पौषध वृत्ति धारण करने में जितनी भी देरी हो जावे उतना ही समय दूसरे दिन सूर्योदय हो जाने के बाद पौषधवृत्ति में कायम रहे, उसे ही प्रतिपूर्ण पोषध माना जाता है। सम्पूर्ण
आठ प्रहर से कम पौषध को प्रतिपूर्ण पोषध में नहीं लिया जाता है। ___ यदि कोई सम्पूर्ण भाठ प्रहर का स-सामायिक पौषध ब्रत नहीं करके कम समय के लिये पौषध करना चाहे तो वह प्रतिपूर्ण पौषध तो नहीं कहा जाता, और शास्त्रीय विधि से तो ऐसा नहीं
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com