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पौषधोपवास व्रत
२ शरीर पौषध-स्नान, उबटन, विलेपन, पुष्प, गन्ध, अलंकार, वस्त्र आदि से शरीर को बलंकृत करने का त्याग करके धर्मानुष्ठान में लगाना, शरीर पोषध है।
शरीर पौषध भी दो प्रकार का होता है। एक तो देश से और दूसरा सर्व से। शरीर-अलंकार के साधनों में से कुछ त्यागना और कुछ न त्यागना, देश से शरीर पोषध है। जैसे भाज मैं उबटन न लगाऊँगा, तेल मर्दन न करूँगा या अमुक कार्य न करूँगा। इस प्रकार शरीर-अलंकार के कुछ साधनों का त्याग करना, देश से शरीर पोषध है और दिन रात के लिये शरीर-अलंकार के सभी साधनों का सर्वथा त्याग करना, सर्व से शरीर पौषध है।
३ ब्रह्मचर्य पौषध-तीव्र मोह उदय के कारण वेद जन्य चेष्टा रूप मैथुन और मैथुनाग का त्याग करके अात्म भाव में रमण करना और धर्म का पोषण करना, ब्रह्मचर्य पौषध है।
ब्रह्मचर्य पौषध के भी दो भेद हैं। एक देश से ब्रह्मचर्य पौषध और दूसरा सर्व से ब्रह्मचर्य पौषध । अपनी पत्नी के सम्बन्ध में कोई मर्यादा करना देश से ब्रह्मचर्य पौषध है और मैथन का सर्वथा त्याग करके धर्म का पोषण करना, सर्व से ब्रह्मचर्य पौषध है।
४ अव्यापार पौषध-आजीविकोपार्जन के लिए किये
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