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पौषधोपवास व्रत
रूप सामायिक लेकर चित्त को समाधि भाव में प्रवाना, यह दूसरा विश्राम-स्थल है । अथवा देशावकाशिक व्रत स्वीकार करके अपने ऊपर के भार को कुछ समय के लिये कम करना, यह भी गृहस्थ श्रावक के लिए दूसरा विश्राम-स्थल है ।
(३) अष्टमी, चतुर्दशी, पक्खी भादि पर्व के दिन, रात्रि दिवस के लिए पौषधोपवास करना, तीसरा विश्राम-स्थल है।
(४) अन्त समय में समस्त सांसारिक कार्यों से निवृत्त होकर, संलेषणा, संथारा आदि करके शेष जीवन को समाधि प्राप्त करने में लगा देना, यह चौथा विश्राम-स्थल है।
इन चारों प्रकार के विश्राम स्थल में से पौषधोपवास गृहस्थ श्रावक के लिए उसी प्रकार का तीसरा विश्राम-स्थल है, जैसा तीसरा विश्राम-स्थल भारवाहक के लिए रात्रि-निवास रूप बताया गया है। पौषधोपवास की व्याख्या करने के लिए शास्त्रकार लिखते हैं
पौषधे उप वसनं पौषधोपवासः नियम
विशेषाभिधानं चेदं पौषधोपवासः। अर्थात्-धर्म को पुष्ट करने वाले नियम विशेष धारण करके उपवास सहित पौषधशाला में रहना, पौषधोपवास व्रत है।
शास्त्रकारों ने पौषधोपवास के चार भेद कहे हैं। वे कहते हैं
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