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श्रावक के चार शिक्षा व्रत
(१) भार को एक कन्धे पर से दूसरे कन्धे पर रखने के समय, जब ऐसा करने के लिए भार खिसकाया जाता है, तब कुछेक देर के लिए विश्राम मिलता है।
(२) मल-मूत्र त्यागने को कुछ अधिक देर के लिए अपने ऊपर से भार उतारा जाता है, तब विश्राम मिलता है।
(३) जब रात हो जाती है, तब किसी देवल, सराय आदि स्थान में रात भर के लिए भार उतारा जाता है, तब विश्राम मिलता है।
(४) जब चलते-चलते निर्दिष्ट स्थान पर पहुँच जाता है, तब भार उतार देता है और विश्राम पाता है।
भारवाहक की तरह गृहस्थ श्रावक भी जो गृह संसार रूप भार वहन कर रहा है, चार स्थल पर ही विश्राम पाता है। यानि चार स्थल पर ही वह गृह संसार के बोझ से हल्का होता है और तब उसे विश्राम मिलता है। वे चार स्थल इस प्रकार है
(१) 'मैं अणुव्रत, गुण व्रत आदि व्रत स्वीकार करके पौषधोपवास करता हुआ विचरूँ, ऐसा करना ही मेरे लिए कल्याणकर है' इस प्रकार की भावना करना, श्रावक के लिए उसी प्रकार का विश्राम-स्थल है, जिस प्रकार का विश्राम-स्थल भारवाहक के लिए कन्धा बदलना होता है।
(२) सावध योग के त्याग और निर्वद्य योगों का स्वीकार
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