________________
श्रावक के चार शिक्षा व्रत
भेज कर मर्यादित क्षेत्र से बाहर के समाचार मँगवाना, श्रानयन प्रयोग नाम का अतिचार है ।
इस विषय में टीकाकार ने बहुत कुछ लिखा है। उनका कथन है कि यदि श्रावक स्वयं काम करे तो वह विवेक से काम ले सकता है और चिकने कर्म का बन्ध टाल सकता है, लेकिन दूसरे के द्वारा काम कराने पर, श्रावक इस लाभ से वंचित ही रहता है।
२ प्रेष्यवण प्रयोग-दिशाओं की मर्यादा का संकोच करने के पश्चात् प्रयोजनवश मर्यादा से बाहर की भूमि में किसी दूसरे के द्वारा कोई पदार्थ या सन्देश भेजना प्रेष्यवण प्रयोग नाम का अतिचार है। अपना पाप टालने के उद्देश्य से दूसरों को उसकी इच्छा के विरुद्ध कार्य करने को लाज्ञा दे कि अमुक कार्य तुझे करना ही पड़ेगा, यह भी प्रेष्यवण प्रयोग नाम का अतिचार है।
३ शब्दानुपात-मर्यादा के बाहर की भूमि से सम्बन्धित कार्य उत्पन्न होने पर मर्यादा की भूमि में रह कर ऐसा टिचकारा या खेखारा आदि शब्द करना कि जिससे दूसरे लोग शब्द करने वाले का आशय समझ सकें और उसके पास आजावें या कार्य कर सकें, शब्दानुपात नाम का अतिचार है।
४ रूपानुपात-मर्यादा में रखी हुई भूमि के बाहर का कोई कार्य उत्पन्न होने पर इस तरह की शारीरिक चेष्टा करना कि Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com